इस कदर अब हद से गुजरने लगे हैं लोग..
इस कदर अब हद से गुजरने लगे हैं लोग।
बिन बात के ही मारने मरने लगे हैं लोग॥
अपनी हवस का धर्म को जरिया बना लिया।
क्या क्या धर्म के नाम पर करने लगे हैं लोग॥
खाते थे कभी खौफ जंगलों में जाने से।
अब बस्तियों से डर के गुजरने लगे हैं लोग॥
कुछ इस कदर माहौल बदला है की क्या कहें।
अब प्यार जताने से भी डरने लगे हैं लोग॥
इतने गिर गये है उठने की होड में।
कि अपनों के ही पंख कतरने लगे हैं लोग॥
बेशर्मियों की सब हदों को पार कर गये।
अब अपने देश से दगा करने लगे हैं लोग॥
नापाक चाहतों का है कैसा जुनून ये।
कि कत्ल हर उसूल का करने लगे हैं लोग॥
— सतीश बंसल
बहुत सुंदर गजल !