तुकांत रचना
ईश्वर तेरे खेल भी निराले हैं
जीवन में किसी के उजाले हैं
किसी और दर दर भटक रहा कोई
मिलते न रोटी के दो निवाले है!
तेरी ही रचाई है ये सृष्टि प्रभु
तूने ही जीवन दिया सबको यहाँ
फिर क्यूँ तेरी आँखों के समक्ष
हो रहे तबाही के सिलसिले हैं!
तुम ही उत्तर दो इन सब का
तुम ही करो समाधान इसका
हम तो केवल इक कठपुतली
तुम को मानते अपना रखवाले हैं!!!