कविता : इस दिसम्बर तक
ये सर्दीयो की लम्बी लम्बी राते
तुम्हारी याद की तपिस बढा देती है
उस पर ये खुबसुरत वहम कि
तुम जहां भी हो मेरे हो
अब आ जाओ कि फैसला ले लें
कहां तक साथ हो
कहां तुम बिछड जाओगे
कि समय का झोकां
कहां हमे ले जाये
और अगले दिसम्बर
ना जाने
हम कहा तुम कहा होगे ।।
— साधना सिंह
सुन्दर