नव वर्ष है आई
नव वर्ष है आई
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शहर सज गए नव वधु जैसे
गूंज उठी शहनाई
इठलाती बलखाती देखो
नव वर्ष है आई
ठिठुर ठिठुर कर गुजरी रातिया
कासे कहे धरणी निज बतिया
नव कल्पना कर नव सृजन
अंकुरित खुशी जुड़े है छतिया
छटकर कोहरा पीयूष रुप धर
बूंद ज्यों ही गिर आई
इठलाती बलखाती……………
भेद खोलते कोहरे भी हैं
जागा आसमाँ रात रात भर
नहीं सह सका धरती से दूरी
छलक पड़े अश्रु पिघल कर
मृदुल हृदया धरती मैया
कर क्षमा मुस्काई
इठलाती बलखाती……………….
बन बगियन में खिले पुष्प नव
गाते गीत खग कुल कर कलरव
अलसाई किरण ले आई खुशी
झूम उठे तरु के नव पल्लव
साज श्रृंगार कर धरती मैया
नवोढ़ा सी सकुचाई
इठलाती बलखाती………………
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©कॉपीराइट किरण सिंह
किरण सिंह जी ,कविता बहुत अच्छी लगी ,परिचय पड़ा ,आप की महान सोच को नमस्कार .
हृदय से आभार