क्या एम.सी.आई. देशवासियों की स्वास्थ्य समस्याओं प्रति पूर्णतया निरपेक्ष है ?
एम.सी.आई. और उससे जुड़े तमाम लोग और पदाधिकारी नोट करें कि कोकाकोला के विषय में उससे जुड़े एक बड़े अधिकारी ने उसकी घातकता के विषय में बड़ा खुलासा किया है. मेरे अभिमत में इसका और अन्य विज्ञापित वस्तुओं के विषय में खुलासें काफी पहले ही एम.सी.आई. के जरिये होना चाहिए थे. बड़ी अजीब, दर्दनाक, शर्मनाक, अफ़सोसनाक, हद दर्जे की अनदेखी, अपरम्पार उपेक्षा और असीमित दायित्वहीनता है कि देश के लोगों को क्या खिलाया – पिलाया जा रहा है, इससे किसी भी जिम्मेवार व्यक्ति या संस्थान को कोई मतलब नहीं है. तथाकथित सेलिब्रिटी के तथाकथित सेहत या ताकत सम्बन्धी अथवा अन्य सकारात्मक दावों या वचनों को आम जनता सच माने वहां तक तो ठीक है, परन्तु मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इण्डिया इन दावों अथवा आप्त वचनों पर चुप्पी साधे रहे और निरपेक्षभाव से सब चलने दें की मुद्रा में हो यह तो हद है.
घोर उपेक्षा का आलम यह है कि मेडिकल कॉलेजों में पोस्ट ग्रेजुएशन और टीचर्स द्वारा पदोन्नति के लिए किए जा रहे अनिवार्य शोधों का देश की प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं से कोई सीधा सीधा सम्बन्ध ही नहीं है. ऐसे कुछ हजार नहीं कुछ लाख शोध अबतक जनता जनार्दन के पैसों से सम्पन्न हो चुके हैं. हरेक मेडिकल और आयुर्वेदिक कॉलेज में कुपोषण पर व्यावहारिक, सार्थक और समस्या के उन्मूलन पर केन्द्रित शोध होने चाहिए थे, दुखद है कि न तो हुए हैं और न ही हो रहे हैं. टी.बी., मलेरिया, डिहाइड्रेशन, मातृमृत्यु, आदि आज भी भयावह स्थिति में हैं. उपलब्ध जल को पेयजल में रूपान्तरित करने के सार्थक शोध क्षेत्रीय स्तर पर होने चाहिए.
इधर सॉफ्टड्रिंक, कोल्डड्रिंक, फास्टफूड, जंकफूड, रिफ़ाइन्ड ऑइल, माइक्रोवेव ओवन, लिपस्टिक और कास्मेटिक्स में मौजूद लेड और अन्य घातक एवं कैंसरकारक रसायन भी देश के नागरिकों की सेहत पर पिल पड़े हैं.
एम.सी.आई. के अधिकारियों से एक छोटा-सा करबद्ध विनम्र अनुरोध है कि कृपया इस तरफ भी ध्यान दें, यह देश पहले ही अपनी बुनियादी स्वास्थ्य समस्याओं से बेहद परेशान है.
गरीबी और स्वास्थ्य चेतना के अभाव के चलते इन नए आक्रमणकारियों से बचाने का सार्थक, ठोस और व्यावहारिक प्रयास करें. अपने उत्पादों को ज्यादा से ज्यादा खपाने के लिए निर्माताओं और व्यापारियों के अपने उत्पादों के विषय में दावों और वैज्ञानिकों के शोधपरक तथ्यों में झूठ तथा सच का जमीन आसमान का अन्तर हो सकता है.
यदि देशप्रेम के भावावेश में अपनी सीमा का उल्लंघन किया हो तो करबद्ध क्षमा याचना करता हूं. इस देश के नागरिकों की स्वास्थ्य रक्षा का करोड़वां ही सही मेरा भी दायित्व है, ऐसा मुझे मुगालता है. वंदेमातरम्
— डॉ. मनोहर भण्डारी
हमारा देश बहुत गलत दिशा की ओर चला गिया है .पीजे बर्गर कोका कोला जैसी रबिश फ़ूड को छोड़ कर ,should come back to basic . दाल रोटी ,दही लस्सी और अफोर्ड कर सकें तो कुछ फ्रूट खाने से बहुत बिमारिओं से बचा जा सकता है और घर के बजट में संतुलन किया जा सकता है .