आतंक
कौन धर्म कहता ,बेगुनाहों को मारा जाए !
हश्र देख धरा का ,खुदा भी यह दोहराए !
ऐसे कर्म करके ,क्या तुम कहलाओगे ,
आतंक को फैला के ,क्यों इतना लहू बहाए !
मानवता ही श्रेष्ठ धर्म है ,जब इसे निभाओगे ,
शान्ति तुम्हें भी मिलेगी ,अपने कदम जो बड़ाए !
गल्तफहमी को क्यों उपजाते ,मन को हो भ्रमाते ,
छोड़ दो अब भी यह राहें ,फिर देर न हो जाए !!!
कामनी गुप्ता ***