तेरी तस्वीर
ग़ज़ल / अनुपमा दीक्षित मयंक
बहर- 1222 1222 1222 1222
तेरी तस्वीर मुझसे यूँ हमेंशा बात करती है
बनी है आयना दिल का मेरे सँग आह भरती है।
तेरा जो साथ मिल जाये मुझे क्या डर जमाने का।
बिना तेरे न जाने क्यों मेरी हर साॅस डरती है।
भुलाकर भी कभी दिल से तुझे ना भूल पायी मैं।
तेरे यादों के साये मैं मेरी ये रूह जलती है!
कभी हसना कभी रोना कभी खुद में ही खो जाना।
यही है जिन्दगी अब तो कमी तेरी ही खलती है।
दुआओ में हमेशा ही तुम्है बस माँगती “अनुपम”।
कभी तुम लौट आओगे यही बस ज्योत जलती है।
© अनुपमा दीक्षित मयंक