ओ लाल मेरे
ओ लाल मेरे ओ लाल मेरे
तुम ही जीवन के ख्वाब मेरे
जब से तू परदेश गया है
दिल मे ये इक दर्द नया है
चान्द सितारे वाली जिद तक
पूर्ण करूँगी मै हर हद तक
तू ही मुझको भूल गया है।
दौलत पाकर फूल गया है।
यही अरज करता हूँ तुझसे।
आकर इक दिन मिल ले उससे
मैं समझा दिल को रह लुगाँ!
पिता हूँ बेटा सब सह लुगाँ।
तेरी मां अब सह नही पाती।
आने के सपने ये सजाती।
राह को तेरी तकते तकते।
नैना हमारे कभी न थकते।
आजा हमको देने खुशियाँ!
राह निहारे नित दो अखियाँ
— अनुपमा दीक्षित मयंक
आगरा