राजनीति

भारत बनाम इंडिया

भारत के लिए इंडिया नाम भी प्रयुक्त किया जाता है। विदेशी लोग तो प्राय: इंडिया शब्द का ही प्रयोग करते हैं किन्तु समझ में नहीं आता कि भारतीय लोग इंडिया क्यों कहते हैं? हमारी पहचान तो भारतीयता के आधार पर है। भारत केवल भूखंड का नाम नहीं वरन इस देश की संस्कृति, समाज और परंपरा का नाम है। वास्तव में भारत के लिए इंडिया ही नहीं हिंदुस्तान भी प्रयुक्त होता है। प्राचीन काल में आर्यावर्त नाम भी इस्तेमाल होता था। भारत स्वदेशी और वास्तविक नाम है तो इंडिया शब्द हिंदिका शब्द से बना है जो पश्चिम अथवा यूरोप से होता हुआ आया है। हिंदुस्तान फारस और अरब से हो कर आया है। लेकिन भारत नाम भारत की धरती का होने के कारण स्वाभाविक और औचित्यपूर्ण है, क्योंकि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा सेजुड़ाहुआ है। इंडिया में पाश्चात्य संस्कृति की गंध आती है। भारत स्वतंत्रता का प्रतीक है तो इंडिया गुलामी का।

यहाँ यह कहना असमीचीन न होगा कि भारत में देश की अखंडता और एकात्मकता के बीज अंकुरित हैं जबकि इंडिया में विभाजन की जड़ों को पकड़ने की कोशिश होती है। भारतवासियों के लिए भारत उनकी माता है और वे अपने को उसका पुत्र मानते हुए उसका नमन करते हैं, जबकि इंडिया हमारे भीतर परायापन की भावना पैदा करता है। भारत हमें अहिंसा पर विश्वास करने और उसका अनुगमन करने का पाठ पढ़ाता है जबकि इंडिया हिंसा की ओर ले जाता है। भारत ऋषि-मुनियों का देश लगता है जबकि इंडिया विलासियों और हिप्पियों का देश लगता है। भारत सौहार्द्र, मैत्री, त्याग और वसुधेव कुटुंबकम का पाठ सिखाता है जबकि इंडिया इनसे हमें दूर रखने का प्रयास करता है। भारतीय दर्शन, भारतीय संस्कृति, भारतीय परंपरा, भारतीय साहित्य, भारतीय जीवन, भारतीय पुराण और इतिहास, भारत की विकासशीलता आदि भारत की अस्मिता और पहचान है जबकि इंडिया इन सबको अपने भीतर समेट नहीं पाता। एक अन्य बात उल्लेखनीय है कि सत्यमेव जयते  हमारे देश भारत का प्रतीक वाक्य है जो मुंडक उपनिषद से उद्धृत है और यह वाक्य भारतीय विचारधारा को ही उद्घाटित करता है। भारत पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों की पूजा करता है, इसीलिए वह गाय और तुलसी को माता की पदवी देता है। वह गाय की रक्षा करता है जबकि इंडिया उसके भक्षण के लिए लालायित रहता है। भारत गांवों के अतिरिक्त शहरों में भी निवास करता है जबकि इंडिया केवल शहरों में रहता है। भारत अमीरों और गरीबों को समान नज़र से देखता है जबकि इंडिया अमीरों को ही निहारा करता है। भारत भारतीय वस्त्र, खान-पान और जीवन-शैली की पहचान है और इंडिया विदेशी वस्त्र, खान-पान और जीवन-शैली को अपनाने में अपनी शान समझता है। भारत अपनी भाषा हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं को अपने भीतर आत्मसात किएहुए है जबकि इंडिया अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ियत के गीत गाता रहता है।

भारत के विकास और आधुनिकीकरण के लिए नई-नई परियोजनाएं बनाई जा रही हैं और उन्हे मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया आदि अंग्रेज़ी के जोरदार नारों से सुसज्जित किया जा रहा है। अंग्रेजी में दिए गए इन नारों से इंडिया के विकसित और आधुनिक होने की आशा तो है लेकिन यह पश्चिमीकरण, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण से अवश्य प्रभावित होंगे। ऐसे इंडिया में विलासिता, भौतिकता,स्वार्थपरकता और परायापनकेसाम्राज्य की भी संभावना है। साथ-साथ भारतीयता, आध्यात्मिकता, अपनापन और सांस्कृतिक चेतना के दर्शन न होने की पूरी-पूरी आशंका है तथा ग्रामीण जीवन के प्रति संवेदनहीनता के संकेत भीमिल सकते हैं। हिन्दी अथवा भारतीय भाषाओं में ये नारे हमारी मानसिकता में परिवर्तन लाने में सहायक हो सकते है जो भारत को विकसित और आधुनिक राष्ट्र बनाने में सहायक हो सकते हैं।

अत: भारत को भारत ही रहने दो, इंडिया नहीं। भारत नाम में ही महानता है और यही हमारी पहचान है। यही हमारी अस्मिता है। जय भारत।

— प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी

 

 

 

 

प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी

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