एक गीत
कहने को तो सब कहते हैं, हम सब हिन्दुस्तानी,
सबके राम रहीम अलग हैं, सबकी अलग कहानी।
1
हम सब फूल एक उपवन , कहना आसान नहीं है,
इंसानों का क़त्ल करे जो, वो इंसान नहीं है,
हो दंगा फसाद तो उनके चेहरे खिलते हैं,
ये संयोग नहीं है उनके ,घर ही बम मिलते हैं
शीश नवाते नहीं जहाँ का खाते दाना-पानी।
सबके राम रहीम अलग —-
2
कहने को तो लोग यहां मिल-जुल कर सभी रहेंगे,
ऐसे भी कुछ लोग जो “वन्दे मातरम्” नहीं कहेंगे,
भारत माँ को माँ कहना जिनको स्वीकार नही है
तो भारत में रहने का उनको अधिकार नहीं है,
अपने घर में छुपा रखा है हमारा औघड़ दानी।
सबके राम रहीम अलग हैं—–
3
पहले खुद को देखें फिर औरों पर कीचड़ फेंकें
घर में ही जो पलते हैं, उन ग़द्दारों को देखें,
राजनीति के पंडों को ये जरा नहीं खलता है
अलग-अलग कानून बनाकर देश नहीं चलता है
ये समाजवादी प्रहरी हैं, ये कहना बेईमानी ।
सबके राम रहीम अलग ——-
— शुभदा बाजपेई
सुंदर रचना सच्चाई के करीब