कविता

रुढिता की बेडियां….

रुढिता की बेडियां बढने नही देगी कदम
पाना है गर मंजिले इन बेडियों काट दो।
उग रहा है अब नया सूरज जहां में प्रीत का
प्रेम का आलोक अब सारे जहां में बांट दो॥

हम कदम बन कर चलो हर रास्ता कट जायेगा
दिल खुला रखो कुहासा खुद ब खुद मिट जायेगा।
करना सीखेगी हिफा़जत जब हवा दीपक की खुद
अंधकारों का कलेजा खुद ब खुद फट जायेगा॥

हमने बदली सोच गर अपनी जहां बदलेगा ही
नफरतों की ये ज़मीं और आसमां बदलेगा ही।
नेक नीयत रख कदम आगे बढा कर देख तो
जिन्दगी की जिन्दगी का फ़लसफ़ा बदलेगा ही॥

बोलियां जब प्यार से आवाज देगीं दिल सुनेगा
बिन सुने शब्दो को बिन बोले ही दिल आवाज देगा।
रूह में इंसानियत की देख तो एक बार बसकर
ये जहां फिर स्वर्ग से बढकर हमें अंदाज देगा॥

खोल दो इंसानियत के पंख पिजरा तोड दो
धडकनों से धडकनों के तार फिर से जोड दो।
बन इरादों की अडिग चट्टान सत पथ डट रहो
खंड कर जालिम के हर तूफान का रुख मोड दो॥

भोर नव रिश्तों की मानव प्रीत का नव रच विहान
इस जहां से हर कुरीति हर बुराई छांट दो….
उग रहा है अब नया सूरज जहां में प्रीत का
प्रेम का आलोक अब सारे जहां में बांट दो….

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

4 thoughts on “रुढिता की बेडियां….

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कविता बहुत अच्छी लगी .

    • सतीश बंसल

      आभार आद. गुरमेल जी..

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता !

    • सतीश बंसल

      आभार आद. विजय जी

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