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जानिए क्यों हैं 49%दलित बच्चे शिक्षा से दूर

 

जुलाई 2015 में अंग्रेजी के दैनिक अख़बार टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में एक खबर छपी थी जिसमे एक राष्ट्रिय स्तर के सर्वे के आंकड़े दिए थे । उस आंकड़े के अनुसार देश में 49% sc/st के बच्चे स्कूल नहीं जा पाते है , अर्थात देश में 3-13 साल के 60.6 लाख बच्चे ऐसे हैं जो स्कूल नहीं जाते जिनमे की 30 लाख बच्चे केवल sc/st समुदाय से हैं।

उस सर्वे के अनुसार देश में 3-13 वर्ष की आयु के बच्चे जो स्कुल नहीं जाते उनमे से अनुसूचित जाति / जन जाति के बच्चों की संख्या 50% है , यानि अनुसूचित जाति/ जन जाति के कुल बच्चों में से आधे बच्चे स्कूल ही नहीं जाते ।देश की कितनी भयावक तस्वीर है ये , विचलित करने वाले आंकड़े ।
ग्रामीण क्षेत्र में ये संख्या 77% है , आप समझ सकते हैं स्थिति को ।

कारण क्या है जो इतनी बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति / जन जाति के बच्चे स्कूल नहीं जा पाते या स्कूल ड्राप करते हैं?।निश्चय इसका कारण , स्कूल में अध्यापको का sc/st बच्चों के प्रति जातिवाद मानिसकता का व्यवहार , सरकार का शिक्षा प्रसार में उदासीनता , प्राइमरी विद्यालयो की कमी ,शिक्षा बजट में कमी तो है ही इसके साथ इतनी बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति / जन जाति के बच्चों का स्कूल से दूर रहने का कारण है भारतीय शिक्षा प्रणाली में परीक्षाओं का निर्धारित समय सारणी।

सरकारी आंकड़ो के अनुसार देश में 55% जनसख्या भूमिहीन है , उनमे 70% केवल अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग हैं । ये भूमिहीन मजदुर मुख्यत: ग्रामीण इलाको में रहते हैं और खेतिहर मजदुर के रूप में काम करते हैं ।भारत का मुख्य अर्थव्यस्था खेती पर ही निर्भर होती है , और उन अनुसूचित जाति / जनजाति भूमिहीनों या जिसके पास थोड़ी जमीन है उनके रोजगार का मुख्य स्रोत कृषि ही होता है ।

कृषि अर्थव्यवस्था में लिप्त खेतिहर मजदूर को साल में केवल 6 महीने की काम मिलता , क्यों की कृषि का काम मुश्किल से 6महीने ही चलता है वर्ष में। ये भी सर्व ज्ञात तथ्य है की भू स्वामी सरकार द्वारा निर्धारित मजदूरी कृषि मजदूरो को नहीं देते बल्कि बहुत ही मामूली रकम या आनाज के रूप में मजदूरी देते हैं।ये अनुसूचित जाति / जन जाति के भूमिहीन मजदूर भू- स्वामियों के खेतो में काम कर के ही अपना गुजर बसर करता है ।

भारत में कृषि कार्य जैसे बुआई , कटाई , निराई का समय और स्कूल की परीक्षाओं का गजब सम्बन्ध देखने को मिलता है । बुआई , कटाई के समय खेतो में भारी मजदूरो की जरूरत पड़ती है और यही समय होता है बच्चों की स्कूली विभिन्न परीक्षाओं का ।पुरे वर्ष के लिए आनाज जुटाने के लिए दलित परिवार जुट जाता है खेतो में , यदि काम नहीं किया तो पुरे साल भूखे मरेंगे। अत: छोटे बड़े सभी सदस्य सक्रीय हो जाते हैं , यदि वयस्क खेतो में काम करने जाते हैं तो छोटे बच्चे घर की रखवाली करते हैं या अपने से छोटे की देखभाल । ये छोटे जानवरो को चराने ले जाते हैं या उनके लिए चारा लाते हैं , यानि बड़ो के बाद अधिकतर जिम्मेदारी उन पर ही आ जाती है ये रखवाली करने वाले बच्चे मुख्यत: पांच से 12 साल की आयु के होते हैं ।

ग्रामीण पृष्ठभूमि के पाठक मित्र जानते होंगे की धान की रोपाई अधिकतर जुलाई अगस्त में होती है और यही समय होता हैविद्यालय में नए दाखिलों का । धान की रोपाई में व्यस्त होने के कारण अधिकतर दलित बच्चे दाखिला लेने से वंचित हो जाते हैं । धान की रोपाई के एक डेढ़ महीने बाद उसकी निराई का समय होता है , निराई में बड़े पैमाने पर बाल मजदूरो की जरुरत होती है अत: जिन दलित बच्चों ने दाखिला ले लिया होता है स्कूल में उन्हें पेट की खातिर पढाई बीच में ही छोड़नी पड़ जाती है ।

फिर अक्टूबर -नवम्बर में धान की कटाई शुरू हो जाती है और एक बार फिर खेतो में दलित बच्चों की जरुरत आ पड़ती है । यही समय विद्यालयो में अर्थवार्षिक इम्तेहान या छमाही परीक्षा के होते हैं , नतीजा ये होता है की दलित बच्चे स्कूल से बाहर रहने में विवश हो जाते हैं।
इसके बाद तुरंत ही गेंहू की बुआई शुरू हो जाती है , दलित बच्चे पेट भरने के लिए खेतो में मजदूरी करते रहते हैं इधर गृह परीक्षाएं समाप्त हो जाती है या किसी बच्चे ने परीक्षा दे भी दी तो तैयारी पूरी नहीं होती ।

कुछ लोग ये कहेंगे की सरकार दलित बच्चों को वजीफा देती है , पर हकीकत में वजीफा कितनो को मिलता है? 100 बच्चों में से मात्र 30-35 बच्चे ही वजीफा पाते हैं बाकी को किसी न किसी कारण बता वजीफे से महरूम कर दिया जाता है ।शिक्षा जगत में ऊपर बैठे सरकारी अफसर लोग वजीफे में घोटाला कर के अपनी जेब भर लेते हैं।
फिर वजीफा भी कितना मिलता है? प्राइमरी में वजीफे की राशि 60 रूपये से भी कम है । क्या इस महंगाई के ज़माने में 60 रूपये में कॉपी / किताब, पेन्सिल,रबड़, आदि मिलना संभव है? फिर बच्चों का कुछ जेब खर्च भी होता है ।
उस पर सरकार ये प्रचारित करती है की दलितों को मुफ़्त शिक्षा दिया जाता है … क्या ये मुफ़्त शिक्षा है?

जब तक सरकार देश में शिक्षा का पैटर्न नहीं बदलेगी तब तक कोई सुधार मुमकिन नहीं है , आजादी के 68 सालो बाद भी दलित समाज के आधे बच्चे यदि शिक्षा के दरवाज़ो से दूर हैं तो निश्चत ही शिक्षा प्रणाली में बहुत बड़ी खामी है ।

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

2 thoughts on “जानिए क्यों हैं 49%दलित बच्चे शिक्षा से दूर

  • विजय कुमार सिंघल

    लेख में यह भी बताना चाहिए था कि कितने ग़ैर-दलित बच्चे शिक्षा से दूर रहते हैं और क्यों ?

  • विजय कुमार सिंघल

    अशिक्षा का मूल कारण ग़रीबी ही है। इसका कारण जातिवाद नहीं है। जातिवाद कहीं कहीं प्रभाव डालता है पर अधिक नहीं। यदि माँ बाप को उचित और पर्याप्त रोज़गार मिल जाये तो उनके बच्चे भी पढ़ेंगे। अपने बच्चों को अशिक्षित कोई नहीं रखना चाहता।

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