मैं शहीद हूँ
वह आज फिर छत पर आई होगी
चॉद से थोड़ी देर बतियाई होगी
तारों पर थोड़ी देर ललचाई होगी
फिर चाँद को देख कोई गीत गुनगुनाई होगी
फिर पायल झनकाती नीचे उतर आई होगी
चाँद से कोई तो पैगाम लाई होगी
वह आज फिर छत पर आई होगी
वह आज मंदिर की सीढ़ीयाँ चढ़ आई होगी
साथ में पूजा की थाल लाई होगी
थाल ने गेंदे की महक फैलाई होगी
उसने मंदिर की घंटी बजाई होगी
और होंठो से कुछ बुदबुदाई होगी
वह आज फिर छत पर आई होगी
ढलती साँझ में वह पनघट से आई होगी
साथ में पानी का घड़ा भर लाई होगी
पनघट पर जब उसकी चुनरी लहराई होगी
सरसों के खेत सी वह भी बलखाई होगी
गीले पदचिह्न द्वार तक छोड़ आई होगी
वह आज फिर छत पर आई होगी
वह आज झुमका कमरे में भूल आई होगी
गाँव की सीमा पर दूर कोई बारात आई होगी
तो शायद उसे मेरी याद आई होगी
वह उसी आम तले आई होगी
आँखें नम न हो इसी में भलाई होगी
वह आज फिर छत पर आई होगी
जब पडोस की टी .वी पर ख़बर आई होगी
वह भी चुपके से यह बुलिटेन सुन आई होगी
कि एक बार फिर सीमा पर लड़ाई होगी
यह सुन वह थोड़ा तो घबराई होगी
फिर उदास कदमों से रसोईघर लौट आई होगी
वह आज फिर छत पर आई होगी
आज फिर मेढ़क टर्राया होगा और बरखा आई होगी
उन पहली बूदों में मेरी गाय तब तक नहाई होगी
जब तक दूसरे खूँटे से वो उसे न बाँध आई होगी
द्वार के बाहर बाबा और चौखट पर माई होंगी
दोंनो ने बूढ़ी ऑखें क्षितिज पर दौड़ाई होगी
वह आज फिर छत पर आई होगी
वह आज आईना देख शर्माई होगी
माथे पर लालिमा सी बिंदी लगाई होगी
और आख़िरी बार उसने माँग सजाई होगी
क्योंकि वह सुबह ऐसी ख़बर लाई होगी
जिससे उसकी ऑख भर आई होगी
वह आज फिर छत पर आई होगी
मेरा दावा है उसकी सूनी कलाई होगी
मेरे गाँव में क्या कहूँ कैसी खामोशी छाई होगी
खेतों में भी अजीब सी चुप्पी छाई होगी
जब द्वार पर मेरे, मेरी ही अर्थी आई होगी
जब फौलादी सीने से मेरे, दुश्मन की गोली चोट खाई होगी
वह आज फिर छत पर आई होगी
बहुत सुन्दर !
शुक्रिया
बहुत सुन्दर !
बहुत खूब .
धन्यवाद