बिन बेटी होता नही..
‘दोहे’
बिन बेटी होता नही, आंगन में उल्लास।
बेटी मंगल गीत है, बेटी कल की आस॥
बेटी प्रीत स्वरूप है, बेटी आनंद रूप।
प्रीत प्रीत बस प्रीत है, बेटी का प्रारूप॥
ईश्वर का वरदान है, आंगन बेटी पांव।
जीवन की हर धूप में, बेटी शीतल छांव।
सुख का अमृत घोलती, बेटी की मुस्कान।
घर आंगन में बेटियां, खुशियों का वरदान॥
हर मर्यादा साधती, रखती सबका मान।
दो कुल को रोशन करे, बेटी दीप समान॥
बेटी तुलसी रूप है, जगजननी अवतार।
बेटी तो करती सदा, दो कुल का उद्धार॥
हर पल खुशियां बांटती, मन में सेवा भाव।
बेटी धारा प्रीत की, सुख की शीतल छांव॥
बंसल बेटी को समझ, देवी के समरूप।
ईश्वर का वरदान है, बेटी का यह रूप॥
सतीश बंसल