ग़ज़ल : जब कली को मुस्कुराना आ गया
जब कली को मुस्कुराना आ गया|
जान लो मौसम सुहाना आ गया ||
**
पंछियों की डार आई ही नहीं |
बोल दो गेहूं में दाना आ गया ||
**
फेसबुक पर आ पड़ोसी ये कहे |
आप को मल-मल नहाना आ गया ||
**
काग कहता है अरी सुन री सखी |
नोच खाने का जमाना आ गया ||
**
लाख सोचे खर्च करने को अगर |
लाडले को भी कमाना आ गया ||
**
साँप को रस्सी समझ मंजिल चढ़े|
शर्तिया कोई दीवाना आ गया ||
**
लाट बन के ही सदा फिरते रहे |
पेट बोला हल चलाना आ गया ||
**
साल सोलहवां ये मयखाना हुआ |
आँख से पीना पिलाना आ गया ||
**
इश्क से बढ़कर कोई उस्ताद क्या
दस्त से खाना खिलाना आ गया ||
**
आप से सच ही कहा आलोक ने |
प्यार में रोना रुलाना आ गया ||
— आलोक अनंत