गज़ल
कहीं बंद किवाड़ों में भी आरज़ू सिसकती होगी।
अपने अरमानों को पूरा करने को तरसती होगी।
कुछ बेड़ियां बेवजह ही कायम थी यूंही मगर
रह रहकर उनमें बगावत सी कोई मचलती होगी।
कैसे कह दोगे नहीं गुंजाइश थी कोई मुनासिब
वो कौन खुशबू है जो न कभी महकती होगी।
था वास्ता अंजानी सी इबादत का इस कदर
पर अश्कों से हर पल ज़िंदगी गुज़रती होगी।।।
कामनी गुप्ता ***
वाह
बहुत बढियाँ
हौंसला बड़ाने के लिए धन्यवाद जी
कुछ बेड़ियां बेवजह ही कायम थी यूंही मगर
रह रहकर उनमें बगावत सी कोई मचलती होगी। वाह वाह ………..
धन्यवाद जी
वाह बहुत खूब!!
धन्यवाद जी