दोहे
मन में धारण कीजिये, मानवता के मूल।
धीरज और विवेक को, मानव कभी न भूल॥
अपने मन में धारिये, सत्य और सदभाव।
तारेगी मजधार से, सदा सदा यह नाव॥
धर्म नाम मत कीजिये, मानवता से घात।
धर्म कभी करता नही, ऊंच नीच की बात॥
पाखंडो ने हर लिया, धर्मों का स्वरूप।
शीतलता की छांव को, बना दिया है धूप॥
धर्म के स्थल कर दिये, दानवता के मंच।
ईश्वर तेरे नाम पर,हो रहे छल प्रपंच॥
भटक रहा है राह से, मानवता का सार।
मिटी आस्था धर्म से, धर्म बना व्यापार॥
मन को चेतन कीजिये, रखिये जगा विवेक।
धर्म कर्म अरु भाव को, मन चितवन से देख॥
सच्चाई की राह में, होगें बहुत व्यवधान।
कर्म और पुरुषार्थ ही, जानों सकल निदान॥
बंसल मानवता रहे, सबसे पहले ध्यान।
फिर चाहे जो पंथ हो, कर देगा उत्थान॥
सतीश बंसल
उत्तम दोहे !
उत्तम दोहे !
शुक्रिया आद… विजय जी..