कविता : माँ
=========माँ ========
कामयाबी की सीढ़ियाँ चढ़ते – चढ़ते
आज बहुत “बड़े” हैं हो गये !!
बैठे माँ की निश्छल छाया में
न जाने, कितने बरस हैं हो गये !!
ईश्वर का वरदान है तू
मेरी जननी ! मेरा अभिमान है तू !
तेरे चरणों में सारी दुनिया
मेरा स्वर्ग, मेरे चारों धाम है तू !!
रहे सलामत हरदम तू माँ
कैसे तेरा कर्ज चुकाऊँ माँ !
एे जननी ! तू मेरी पूजा हो
तुझमें मैं रब को पाऊँ माँ !!
अंजु गुप्ता
भाव को सलाम
बहन अंजू जी सुन्दर भाव ! मुझे लगता है की इस कविता को और परिष्कृत किया जाना चाहिए, आपके अधिकार क्षेत्र पर टिपण्णी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ