दोहे !
नृत्य संगीत शब्द स्वर, मन भावों के नाम
करती प्रेषित भाव को, होय संस्कृति नाम |1|
मुनि ऋषि सब संतों सुनो, एक पते की बात
सशक्त करे अशक्त को, तभी बनेगी बात |२|
धर्म के नाम क्रूरता, कभी नहीं स्वीकार
महावीर बुद्ध गांधी, सबके यही विचार |३|
जो भी कर्म बुरा भला, मन करता है काम
काया तो है पालकी, ढोता बिन विश्राम |४|
पाप पुण्य मन का उपज, कष्ट सहते शरीर
उपवासें सब रूह की, दण्ड भोगते शरीर |५|
देह खोल सकते नहीं, मनस में लगी गाँठ
मन को होगा खोलना, स्वयं मन की गाँठ |६|
© कालीपद ‘प्रसाद’