मुक्तक/दोहा

दोहे !

नृत्य संगीत शब्द स्वर, मन भावों के नाम

करती प्रेषित भाव को, होय संस्कृति नाम |1|

 

मुनि ऋषि सब संतों सुनो, एक पते की बात

सशक्त करे अशक्त को, तभी बनेगी बात |२|

 

धर्म के नाम क्रूरता, कभी नहीं स्वीकार

महावीर बुद्ध गांधी, सबके यही विचार |३|

 

जो भी कर्म बुरा भला, मन करता है काम

काया तो है पालकी, ढोता बिन विश्राम |४|

 

पाप पुण्य मन का उपज, कष्ट सहते शरीर

उपवासें सब रूह की, दण्ड भोगते शरीर |५|

 

देह खोल सकते नहीं, मनस में लगी गाँठ

मन को होगा खोलना, स्वयं  मन की गाँठ |६|

 

© कालीपद ‘प्रसाद’

*कालीपद प्रसाद

जन्म ८ जुलाई १९४७ ,स्थान खुलना शिक्षा:– स्कूल :शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ,धर्मजयगड ,जिला रायगढ़, (छ .गढ़) l कालेज :(स्नातक ) –क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान,भोपाल ,( म,प्र.) एम .एस .सी (गणित )– जबलपुर विश्वविद्यालय,( म,प्र.) एम ए (अर्थ शास्त्र ) – गडवाल विश्वविद्यालय .श्रीनगर (उ.खण्ड) कार्यक्षेत्र - राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कालेज ( आर .आई .एम ,सी ) देहरादून में अध्यापन | तत पश्चात केन्द्रीय विद्यालय संगठन में प्राचार्य के रूप में 18 वर्ष तक सेवारत रहा | प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुआ | रचनात्मक कार्य : शैक्षणिक लेख केंद्रीय विद्यालय संगठन के पत्रिका में प्रकाशित हुए | २. “ Value Based Education” नाम से पुस्तक २००० में प्रकाशित हुई | कविता संग्रह का प्रथम संस्करण “काव्य सौरभ“ दिसम्बर २०१४ में प्रकाशित हुआ l "अँधेरे से उजाले की ओर " २०१६ प्रकाशित हुआ है | एक और कविता संग्रह ,एक उपन्यास प्रकाशन के लिए तैयार है !