ठानो तो कुछ कठिन नहीं है
पांच साल का नन्हा बालक, प्यार सभीका पाता था।
नाम भी उसका अनुराग था, सबसे प्रेम निभाता था॥
यों तो उसको सब कुछ आता, गीत सुरीले गाता था।
पर विद्या के क्षेत्र में किंचित्, आगे बढ़ नहीं पाता था॥
पढ़ता-लिखता खूब जतन से, याद न कुछ रख पाता था।
डॉक्टर-वैद्य भी हार गए थे, कुछ भी समझ न आता था॥
ज़ीरो नंबर आने का डर, उसको बहुत सताता था।
देख सभी के ज़्यादा नंबर, मन मसोस रह जाता था॥
एक बार अखबार में उसने, सुन्दर-सा इक लेख पढ़ा।
उससे प्रेरित होकर ठाना, बनना है उसे बहुत बड़ा॥
ध्यान लगाकर पढ़ने से ही, उसके मन की कली खिली।
नंबर अच्छे जब लाया तो, खूब प्रशंसा उसे मिली॥
एक दिवस ऐसा भी आया, जग में उसने नाम कमाया।
ठानो तो कुछ कठिन नहीं है, उसने यह करके दिखलाया॥
प्रेरणादायक एवं सराहनीय कविता। बधाई।
प्रिय मनमोहन भाई जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.
वाह बहुत सुंदर सार्थक संदेश प्रद सृजन ——-
प्रिय राजकिशोर भाई जी, लाजवाब व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.
बहुत अछि और शिक्षा भरपूर बाल कविता .
प्रिय गुरमैल भाई जी, अति सुंदर व सार्थक टिप्पणी के लिए आभार.