अब सावन को आने दो
बालक-से सूरज अलबेले,
सुबह तो लगते बिल्कुल भोले ।
जेठ-दुपहरी की वेला में,
बरसाते हैं आग के गोले ॥
सुबह फैलाएं मधुरिम लाली.
अब केवल शोले-ही-शोले ।
यौवन की अल्हड़ मस्ती में,
खो गए बाल-रवि जो भोले ॥
अपने आगे नहीं किसी को.
पल भर भी रुकने देते हैं ।
अपने ताप से उसकी सारी,
शीतलता को हर लेते हैं ॥
इतनी मस्ती, इतनी गर्मी ,
सूरज काका ठीक नहीं ।
होता घमंडी का सिर नीचा,
इतना गर्व तो ठीक नहीं ॥
शांत करो थोड़ा किरणों को,
गर्मी कम हो जाने दो ।
झेल चुके तेरे सब नखरे,
अब सावन को आने दो ॥
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह लाजवाब
प्रिय राजकिशोर भाई जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.
bahut-bahut sundar kavita,
प्रिय सखी रीना जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
बहुत ही खूब मैम
प्रिय सखी कामनी जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
नमस्ते आदरणीय बहिन जी। बहुत सूंदर। उत्तम विचार एवं चिंतन। सूर्य में जो गर्मी, ऊर्जा एवं तेज है वह ईश्वर प्रदत्त है। हमारी आँखों में जो ज्योति है वह भी सूर्य की दें है। सूर्य न होता तो संसार अंधकार से पूर्ण होता। हार्दिक धन्यवाद। सादर।
प्रिय मनमोहन भाई जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
बाल कविता बहुत अछि लगी ,बच्चे इसे बहुत पसंद करेंगे .
बाल कविता बहुत अछि लगी ,बच्चे इसे बहुत पसंद करेंगे .
प्रिय गुरमैल भाई जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.