इतिहास

पं. लेखराम द्वारा अपने प्रवचन का इश्तिहार लगाने, आर्यसमाज मन्दिर में झाडू लगाने व दरिया बिछाने का प्रेरणादायक संस्मरण

ओ३म्

प्रेरक संस्मरण

श्रीमद् दयानन्द आर्ष गुरुकुल पौंधा देहरादून के सतरहवें उत्सव पर अन्य अनेक विद्वानों सहित आर्यजगत के सुप्रसिद्ध विद्वान, गीतकार और भजनोपदेशक पं. सत्यपाल पथिक जी भी आये हुए थे। आपने हमे अत्यधिक प्रेम, स्नेह व सम्मान दिया जिसके लिए हम आजीवन उनके आभारी रहेंगे। आपने हमें अनेक महत्वपूर्ण संस्मरण सुनाये। इससे पूर्व भी हम उनके सुनाये दो या तीन संस्मरण फेश बुक पर पोस्ट कर चुके हैं। उसी श्रृंखला में यह अन्तिम संस्मरण है जो उन्होंने हमें सुनाया था। पं. आत्माराम अमृतसरी जी इस घटना क प्रत्यक्षदर्शी थे। पं. सत्यपाल पथिक जी ने उनसे इस घटना व संस्मरण की पुष्टि भी की थी।

एक युवक ने अमृतसर नगर में दीवार पर एक व्यक्ति को इश्तिहार लागाते हुए देखा व उसे पढ़ा। उसके अनुसार उस दिन आर्यसमाज मन्दिर में ऋषिभक्त पंडित लेखराम जी का प्रवचन होना था। वह युवक आर्यसमाज मन्दिर, अमृतसर में प्रवचन से काफी समय पहले पहुंच गया। वहां उसने देखा कि इश्तिहार लगाने वाला व्यक्ति ही आर्यसमाज में झाडू लगा रहा है। इसके बाद उसने आर्यसमाज में दरियां बिछाई। प्रवचन के आरम्भ का समय होने वाला था अतः लोग वहां आने लगे। कुछ ही देर में समाज मन्दिर में हजारों की भीड़ हो गई। यह युवक यह सब कुछ देखता रहा और स्वयं श्रोताओं के बीच बैठ गया। आर्यसमाज के मंत्री व प्रधान जी भी वहां आ गये। प्रवचन से पूर्व एक व अधिक भजन प्रस्तुत हुए।

मंत्री जी ने उस महामानव जिसके प्रवचन सुनने लोग समाज मन्दिर में आये थे, प्रवचन देने की प्रार्थना की। वह युवक देखता है कि इश्तिहार लगाने वाला, समाज मदिर में झाडू लगाने वाला व दरिया बिछाने वाला व्यक्ति ही प्रवचन कर रहा है। यह देख कर उसे सुखद आश्चर्य हुआ। यह है पं. लेखराम जी के जीवन की महानता। वह आर्यसमाज के महान प्रचारक व विद्वान होकर भी छोटे से छोटा काम अपने हाथो से करने में संकोच नहीं करते थे। इसमें उन्हें किसी प्रकार की लज्जा का अनुभव नहीं होता है। पंडित लेखराम जी को सादर नमन्।

हमें भी सन् 1994-1995 के वर्ष में आर्यसमाज धामावाला में आर्यसमाज में झाडू लगाने व दरिया बिछाने का एक या अधिक बार अवसर मिला है। हमारे समाज के लोगों ने तब इसके विरुद्ध कटाक्ष भी किये थे। उन दिनों सत्संग के संचालन व व्यवस्था का दायित्व आर्य विद्वान हमारे मित्र प्राध्यापक अनूप सिंह और श्री राजेन्द्र कुमार प्रशासक व अन्य वरिष्ठ सदस्यों द्वारा हमें दिया गया था। उन दिनों हम व्यवस्था व संचालन के साथ सत्संग की पूरी कार्यवाही को अपनी डायरी में नोट करते थे। घर आकर कार्यक्रम में भजन व प्रवचनों आदि के आधार पर सुलेख लिखकर दो या दिन पृष्ठों की प्रेस विज्ञप्ति बनाते थे। फिर उनकी 6 या 7 फोटो स्टेट कापी कराकर अपने दो पहिया वाहन लूना पर सभी समाचार पत्रों की पे्रस में जाकर उसे प्रकाशनार्थ वितरित करते थे। सभी प्रमुख पत्रों यथा दैनिक जागरण, अमर उजाला, दूनदर्पण, हिन्दी हिमाचल टाइम्स, अंग्रेजी हिमाचल टाइम्स, दून वैली मेल आदि में हमारे समाचार छपते थे। यह क्रम लगभग 1 से सवा वर्ष तक चला जब तक हमें यह दायित्व दिया गया था। इसके बाद वेद प्रचार समिति बनाकर भी हमने यह कार्य किया। यह बात हमने प्रसंग लिखी है। आत्मश्लाधा इसका किंचित तात्पर्य नहीं है। ईश्वर की हम पर कृपा रही है और हमें बचपन से ही संघर्ष व तपपूर्ण जीवन व्यतीत करना पड़ा है। आर्यसमाज से हमें जो लाभ प्राप्त हुआ है उससे हम कभी उऋण नहीं हो सकते। हम समझते हैं कि आर्यसमाज के अधिकारियों को पं. लेखराम जी के जीवन से शिक्षा लेकर स्वयं भी वैसा बनने का प्रयास कर समाज में एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिये। सभी सदस्य भी इसी भावना से ओत प्रोत हो, ऐसा हमें लगता है।

मनमोहन कुमार आर्य

2 thoughts on “पं. लेखराम द्वारा अपने प्रवचन का इश्तिहार लगाने, आर्यसमाज मन्दिर में झाडू लगाने व दरिया बिछाने का प्रेरणादायक संस्मरण

  • लीला तिवानी

    प्रिय मनमोहन भाई जी, सत्संग की पूरी कार्यवाही को अपनी डायरी में नोट करना हमारे बहुत काम आ रहा है. अति सुंदर प्रेरक प्रसंग के लिए आभार.

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन ही। स्वादिष्ट भोजन बाँट कर खाना चाहिए। इसी प्रकार से मैं इन सर्वहितकारी विचारों को प्रसारित कर रहा हूँ। सादर।

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