धरा
मैं धरती हूँ मात तुम्हारी,
गहना मेरा हरियाली ।
क्यों बालक होकर भी खुद,
मां का श्रंगार मिटाते हो ।अनाज उगाकर ह्रदय मेरे,
घर में खुशहाली लाते हो ।
जीवन बिन ब्रक्ष नहीं होगा,
खुद लाते हो बदहाली ।
अगर चाहो सुंदर हो जीवन
ब्रक्षारोपण यहाँ करो ।
ब्रक्ष नहीं होगे जो यहाँ पर,
धरा बने विष की प्याली ।
जब भान तुम्हें इस पल का हो
,पछतावा ही पाओगे ।
धरती बंजर होगी तब तो,
खाली हाथ रह जाओगे ।
— अनुपमा दीक्षित मयंक