ग़ज़ल
देख मेरी नजर गर मचल जाएगी
ख़ामशी शोर में दिल की ढल जाएगी
चढ़ते सूरज की पहली किरण देखना
रात की सारी स्याही निगल जाएगी
धूप चाहत की खिलने तो दे हमनशीं
बर्फ़ अहसास की भी पिघल जाएगी
हर तरफ सब्ज़ खलियान होंगे तभी
जब नदी फ़ाइलों से निकल जाएगी
आज ‘नमिता’ मसीहा मिरा आ गया
अब तबीयत यक़ीनन सम्भल जाएगी
— नमिता राकेश