लघुकथा

लघुकथा : ये दो हाथ

बस का ड्राइवर अधेड़ उम्र का कोई अंग्रेज था।  शायद अपने पूर्वाग्रहों से दूषित ! अपने रोज़मर्रा के एकसार जीवन से ऊबा हुआ !! अनेक कटु अनुभवों के कारण साँप की तरह सतर्क ! डंक मारने को तत्पर।
अभी-अभी आठ दस स्कूली बच्चे शोर मचाते ,एक दूसरे से उलझते, उसकी बस से उतरे थे।  भूरे, गोरे, काले ! वह झल्लाया हुआ था मगर चुप।  पिछली बार जब उसने बस को रोककर उन्हें फटकारा था तब एक लम्बे  तगड़े लड़के ने उसकी बस का इमरजेंसी हैंडल दबा दिया था और ट्रैफिक लाइट्स पर जब बस रुकी तो दरवाज़ा स्वतः खुल गया और वह बाहर कूद गया।  ड्राइवर सकते में रह गया।
तभी आगमन द्वार से एक प्रौढ़ा जमैकन स्त्री भारी भरकम शॉपिंग ट्राली घसीटती हुई बस में चढ़ी। उसके हाथ खाली नहीं थे इसलिए उसने पहले ट्राली को उसके नियत स्थान पर पहुंचाया।  ट्राली  फंसाकर वह वापिस मुड़ी  ही थी कि ड्राइवर चिल्लाया , ” ऐ यू थीफ ! वेयर इस योर टिकट ?” ( ऐ चोट्टी , तेरा टिकट कहाँ है ? )
समझदार स्त्री ने कोई भाव नहीं दर्शाया। पर्स से अपना पास निकलकर दिखाया और शांति से दोनों हाथ उठाकर ऊपर देखते हुए मुक्तकंठ से  बोली, ”भगवान जीसस ! कुत्ते की मौत दे देना मगर चोरी मत कराना इन हाथों से, जिन्हें तुमने मेहनत करके खाने के लिए बनाया था। आमीन।”
—  कादम्बरी मेहरा, लंदन

*कादम्बरी मेहरा

नाम :-- कादम्बरी मेहरा जन्मस्थान :-- दिल्ली शिक्षा :-- एम् . ए . अंग्रेजी साहित्य १९६५ , पी जी सी ई लन्दन , स्नातक गणित लन्दन भाषाज्ञान :-- हिंदी , अंग्रेजी एवं पंजाबी बोली कार्यक्षेत्र ;-- अध्यापन मुख्य धारा , सेकेंडरी एवं प्रारम्भिक , ३० वर्ष , लन्दन कृतियाँ :-- कुछ जग की ( कहानी संग्रह ) २००२ स्टार प्रकाशन .हिंद पॉकेट बुक्स , दरियागंज , नई दिल्ली पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) २००९ सामायिक प्रकाशन , जठ्वाडा , दरियागंज , नई दिल्ली ( सम्प्रति म ० सायाजी विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी एम् . ए . के पाठ्यक्रम में निर्धारित ) रंगों के उस पार ( कहानी संग्रह ) २०१० मनसा प्रकाशन , गोमती नगर , लखनऊ सम्मान :-- एक्सेल्नेट , कानपूर द्वारा सम्मानित २००५ भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान हिंदी संस्थान लखनऊ २००९ पद्मानंद साहित्य सम्मान ,२०१० , कथा यूं के , लन्दन अखिल भारत वैचारिक क्रान्ति मंच सम्मान २०११ लखनऊ संपर्क :-- ३५ द. एवेन्यू , चीम , सरे , यूं . के . एस एम् २ ७ क्यू ए मैं बचपन से ही लेखन में अच्छी थी। एक कहानी '' आज ''नामक अखबार बनारस से छपी थी। परन्तु उसे कोई सराहना घरवालों से नहीं मिली। पढ़ाई पर जोर देने के लिए कहा गया। अध्यापिकाओं के कहने पर स्कूल की वार्षिक पत्रिकाओं से आगे नहीं बढ़ पाई। आगे का जीवन शुद्ध भारतीय गृहणी का चरित्र निभाते बीता। लंदन आने पर अध्यापन की नौकरी की। अवकाश ग्रहण करने के बाद कलम से दोस्ती कर ली। जीवन की सभी बटोर समेट ,खट्टे मीठे अनुभव ,अध्ययन ,रुचियाँ आदि कलम के कन्धों पर डालकर मैंने अपनी दिशा पकड़ ली। संसार में रहते हुए भी मैं एक यायावर से अधिक कुछ नहीं। लेखन मेरा समय बिताने का आधार है। कोई भी प्रबुद्ध श्रोता मिल जाए तो मुझे लेखन के माध्यम से अपनी बात सुनाना अच्छा लगता है। मेरी चार किताबें छपने का इन्तजार कर रही हैं। ई मेल [email protected]

One thought on “लघुकथा : ये दो हाथ

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी कादम्बरी जी, अत्यंत सुंदर लघु कथा के लिए शुक्रिया.

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