मुक्तक/दोहा

कुछ शेर

1- जो कभी मोम के जैसा पिघल जाता था…
वही दिल जाने पत्थर का हो गया है क्यो ।।

2 -कुछ इस तरह ताल्लुक निभाया है हम दोनों ने
कि अब ला-ताल्लुक हो जायें यही अच्छा है ।।

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)