कुण्डलियाँ
“कुण्डलियाँ”
मिलकर दोनों लूटते, साहुकार सरकार
बिल्डिंग उगती खेत में, चला खूब व्यापार
चला खूब व्यापार, मिले बिल्डर अरु नेता
करे खूब प्रचार, कमाय रहे अभिनेता
कह बंसल कविराय,मरे किसान तिल तिल कर
लूटे खेत दलाल, साथ नेता के मिलकर॥
अतिवृष्टि कभी झेलता, सूखा कभी अपार
नजर फेर बैठी मगर, चुनी हुई सरकार
चुनी हुई सरकार, देखती नही पलटकर
फाँसी कभी लगाय, कभी मरता है कटकर
कह बंसल कविराय, मिली केवल कुदृष्टि
कभी अनावृष्टि तो, मारती कभी अतिवृष्टि॥
गर्मी कि हो धूप या, हो सर्दी की रात
काम करे हर हाल वो, जैसे हो हालात
जैसे हो हालात, उसे आराम नही है
उसकी मेहनत का, लेकिन कुछ दाम नही है
कह बंसल कविराय, कर्म का है हठधर्मी
काम करे दिन रात, हो सर्दी या कि गर्मीं
विनती है मेरी यही, कुछ तो करिये ख्याल
नही उगाए अन्न यदि वो, तो क्या होगा हाल
तो क्या होगा हाल, बताओ क्या खाओगे
दौलत से क्या भूख, पेट की हर पाओगे
कह बंसल कविराय, गिनो उसकी भी गिनती
उसको भी सम्मान, दीजिये इतनी विनती॥
सतीश बंसल