दोस्ती
ज़िन्दगी गुजर गई उनकी गुनाहों का बोझ ढोते ढोते ,
‘शराफत’ दिखाने के लिए वोह फिर भी जिए जाते हैं,
सितम पे सितम करते है वोह सबको ‘अपना’ बनाकर ,
बगल में रखतें हैं छुरी, और मुंह सामने मुस्कुराते हैं,
हर महफ़िल में वोह बन जाते हैं सभी यारो के यार ,
मुसीबत में किसी ने पुकारा तो सबसे आँखे चुराते हैं,
न समझा है कोई इनको न कभी समझ पायेगा ,
आज के दौर में यह शख्स अब ‘दोस्त’ कहलाते हैं,
भरोसा रख अपने रब पर जो हर हाल में साथ देगा ,
यह लोग तो पहले कुचलते हैं फिर कन्धों पे उठाते हैं.
—- जय प्रकाश भाटिया