लघुकथा

लघुकथा : समय

खुद की मान बढ़ाने के चक्कर में दूसरे के मान को ना छेड़ें

समय का बही-खाता ऐसा है कि सबका हिसाब रखता है ढेरे

शारदा जी के खिलाफ विभा को और विभा के खिलाफ शारदा जी को भड़काने का एक भी मौका नहीं गंवाते राजू अंजू …. शारदा जी पुत्र मोह में और देवर देवरानी को हितैषी समझ विभा यकीन करती रही ….नतीजा ये हुआ कि शारदा जी और विभा में पूरी जिन्दगी नहीं बनी ….विभा के पति अरुण को अपनी माँ शारदा जी पर पूरा विश्वास था ….शारदा जी जो कहतीं , अरुण आँख बंद कर विश्वास करते और अपनी पत्नी को कभी सफाई देने का भी मौका नहीं देते …. विभा पूरी जिन्दगी सभी रिश्तों को खोती ही रही …. राजू अंजू को खुद को काबिल समझने का तरीका अच्छा मिला था …. 30-32 साल का समय कैसे कटा विभा का इस कागज़ पर लिख पाना संभव नहीं … लेकिन शारदा जी के मौत के बाद उनकी डायरी विभा को मिली …..

अब विभा करे भी तो क्या करे … चिड़िया खेत चुग चुकी है. आप में से किसी की स्थति शायद सम्भल जाए

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “लघुकथा : समय

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विभा जी , गलत्फैह्मियो से ही गलत होता है और जब सारी जिंदगी ही ऐसे बीत जाए तो आखिर में रह ही क्या जाता है . संयुक्त परिवार में बस जो जीता वोह ही सिकंदर .

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी विभा जी, सच है, मान देने से ही मान बढ़ता है-
    ”दिल आईना है,
    ज़रा-सी तरेर से तड़क जाता है,
    दिल मायना है,
    ज़रा-से ताने-बहाने से भड़क जाता है.”
    अति सुंदर, प्रेरक व सार्थक रचना के लिए आभार.

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