कविता

कैसी है ये दुनिया

मरे हुए को उठाती है
जिंदा को गिराती है
कैसी है ये दुनिया
एक इंसान सोता है ,एक जाग कर करता चौकीदारी
कोई सोये मखमल में,कहीं पसरी पड़ा है लाचारी
कैसी है ये दुनिया
कोई आधा खाकर छोड़ता है
कोई कुड़े से रोटी बटोरता है
कैसी है ये दुनिया
बड़े-बड़े राज खुल रहे, कहाँ से आ जाते आसाराम
श्रद्धा भक्ति की शक्ति को जो कर रहे बदनाम
कैसी है ये दुनिया
नेता भड़का कर सो जाते,जनता लगा देती है जाम
मुट्ठी भर हैं ताड़व करते जिनको मिल जाते हैं दाम
कैसी है ये दुनिया
कहीं मस्जिद की अजान,कहीं मंदिरों के घंटाले बजते हैं
इंसानों ने मजहब बनाया फिर भी आपस में लड़ते हैं
कैसी है ये दुनिया
कहीं घटाओं का राज हैं ,कहीं पर नहीं है पानी
कोई तरसे,कहीं बरसे,सब की अलग ही कहानी
कैसी है ये दुनिया
कोई महलों में रह रहा,किसी की टूटी झोपड़ी
देख कर गरीबी,पत्थर की आँखें तक रो पड़ी
कैसी है ये दुनिया
हथियारों को लेकर हाथ में हो रही शांति की बात
खून खराबा बंद ना होता जब हो जाती शुरूआत
कैसी है ये दुनिया
नारों की आड़ में छुप जाते है आतंकवादी
कौन है? जो सब देशों में हो रही बर्बादी
कैसी है ये दुनिया
सबको है मिट्टी में मिलना फिर क्यों कर रहे घमंड़
खुदा हो या हो भगवन् सबको भोगना पड़ेगा दंड़
कैसी है ये दुनिया

परवीन माटी

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733