ब्लॉग/परिचर्चा

लेखक बनने की बधाई: राजकुमार कांदु भाई

हमारे पाठक और कामेंटेटर्स हमेशा से हमारे पथ-प्रदर्शक भी रहे हैं और हमें प्रोत्साहन देकर निरंतर अच्छा लिखने और अधिक अच्छा लिखने की प्रेरणा देने वाले भी. 11 जून, 2016 से हमारे एक नए पाठक और कामेंटेटर राजकुमार कांदु भाई हमारे साथ जुड़े.

 

अंत्याक्षरी से एकोमोडेशन तक ब्लॉग में एक नायाब प्रतिक्रिया में उन्होंने लिखा- ”प्रतिभा हो तो उसे ठुकराने वाला भी अंततः एक दिन उसे गले लगाने पर मजबूर हो जाता है ,बस जरूरत होती है आत्मविश्वास, मेहनत और लगन की / इसी के भरोसे दिनेश ने अपना प्रयास जारी रखा और अपने मकसद में कामयाब रहा / आज के युग में जब हमारी युवापीढ़ी में अधिकांश निराशावादी सोच में जी रहे हैं ऐसे में आपका लेख उनका पथप्रदर्शन कर सकता है / सकारामक सोच और एक और सुन्दर लेख के लिये आपको बधाई !!!!!”

 

इस प्रतिक्रिया से हमें उनके नाम का पता नहीं चल पाया. अब उनकी प्रतिक्रिया हर ब्लॉग में आ रही थी. कुछ दिनों बाद उन्हें लगा होगा, कि हम अक्सर प्रतिक्रिया के उत्तर में प्रिय भाई या प्रिय सखी लिखते हैं, पर उनके लिए हम किसी संबोधन का प्रयोग शायद नाम पता न होने के कारण नहीं कर पा रहे हैं. इसलिए 20 जून को हमारे पास ”वक्त ही बनता ढाल” ब्लॉग में उन्होंने अपना नाम भी लिखा. यहीं से हमने उन्हें ”प्रिय राजकुमार भाई जी,” के संबोधन से संबोधित किया.

 

अब शुरु होती है, उनके लेखक के रूप में स्थापित होने की कहानी. वे एक अच्छे लेखक तो थे ही, यह तो हमें उनकी प्रतिक्रियाओं से भलीभांति विदित हो ही चुका था. उनकी पैनी नज़र कथ्य पर भी रहती है, कथन पर भी, भाषा-शैली भी उनकी नज़र में रहती है और ब्लॉग का शीर्षक भी. वे जो प्रतिक्रिया लिखते हैं, वह एकदम सटीक और नायाब होती है. भाषा की साहित्यिकता और विनम्रता इनकी प्रतिक्रिया की विशेषताएं हैं. हमारे पास उनकी ई.मेल आई.डी. थी ही, हमने उन्हें मेल लिखकर पूछा- ”प्रिय राजकुमार भाई जी, आपकी प्रतिक्रियाओं से लगता है, कि आप बहुत अच्छे लेखक हैं. अगर आप कहीं लिखते हों, तो हम आपकी रचनाएं पढ़ना चाहेंगे.”

 

तुरंत जवाब देते हुए राजकुमार भाई ने लिखा- ”बचपन से ही लेखन के लिए मेरे मन में तड़प रही है, पर जीवन की आपाधापी में यह आकांक्षा दबी ही रह गई. अब भी लिखने को मन कर रहा है.”

 

इसके बाद पत्र-व्यवहार चलता रहा और अंत में ब्लॉग ”कोमल की कमनीयता” से प्रेरित होकर हमारे पास उनकी एक रचना ”काबिलियत की कसौटी पर किन्नर” आई. इस रचना को उन्होंने हमें पसंद आने पर अपने ब्लॉग में प्रकाशित करने की इच्छा जताई और अगले दिन प्रकाशित भी हो गई. आप जानते ही हैं, कि इस रचना का बहुत स्वागत हुआ. हमने उनको इस रचना को अपना ब्लॉग में अपना अकाउंट खोलकर उसमें प्रकाशित करने की सलाह दी थी, उन्होंने कृपापूर्वक हमारे ही ब्लॉग में प्रकाशित करवा दी.

 

हमारे ब्लॉग में आपका ब्लॉग ”काबिलियत की कसौटी पर किन्नर” प्रकाशित होने सभी पाठकों एवं कामेंटेटर्स द्वारा इसे बहुत पसंद किए जाने पर इनको ढेरों बधाइयां भी मिलीं. इससे उत्साहित होकर आपने ”जय विजय” साइट पर अपना अकाउंट खोल लिया. वहां भी इस संस्मरण को बहुत पसंद किया गया. तुरंत ही आपकी दूसरी रचना भी आ गई, जो पुरातन और ऐतिहासिक प्रेरक प्रसंग के रूप में थी, वह भी बहुत पसंद की गई. अब तीसरी रचना आई है ”चलो कहीं सैर हो जाये-1”, जो यात्रा वृत्तान्त के रूप में है. तीनों रचनाओं में वैविध्य देखने को मिलता है और भाषा-शैली ऐसी कि साहित्यिकता के साथ-साथ रोचकता का भी निभाव भलीभांति हो पाया है.

 

प्रिय राजकुमार कांदु भाई जी, आज आपको हमारे ब्लॉग से जुड़े हुए एक महीना हो गया है. सबसे पहले तो आपको एक स्थापित लेखक बनने की कोटिशः बधाइयां हो. भाई, आपके लेखक के रूप में स्थापित होने पर हम बहुत प्रसन्न हैं. आप ऐसी ही उच्चकोटि की रचनाओं का सृजन करते रहें. हमारी कोटिशः शुभकामनाएं आपके साथ हैं.

 
चलते-चलते
आज हमने राजकुमार कांदु लिखकर गूगल में सर्च किया, परिणाम देखकर हम तो भावविभोर हो गए. सबसे ऊपर जय-विजय की रचना भी दिख रही है, जहां राजकुमार भाई एक स्थापित लेखक हैं और यह ब्लॉग ”लेखक बनने की बधाई: राजकुमार कांदु भाई” भी. मज़ा आ गया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

7 thoughts on “लेखक बनने की बधाई: राजकुमार कांदु भाई

  • राजकुमार कांदु

    श्रद्धेय बहनजी !
    हमारी छोटीसी सफलता को आपने अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से नायाब बना दिया है । आप वो पारस हैं जिसके स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है । गुरमेल भाईजी इसके जीवंत उदहारण हैं फिर मैं भला पीछे कैसे रहता ? आपके इस ब्लॉग के माध्यम से मुझ जैसे कईयों को प्रेरणा मिलेगी । धन्यवाद !

    • लीला तिवानी

      प्रिय राजकुमार भाई जी, हमने अभी-अभी आपकी यह प्रतिक्रिया देखी है. सफलता सफलता ही होती है, छोटी-बड़ी नहीं होती है. पहला मज़बूत कदम नींव के पत्थर की तरह होता है. अति सुंदर व सार्थक रचना के लिए आभार.

  • लीला तिवानी

    प्रिय राजकुमार भाई जी, आज हमने राजकुमार कांदु लिखकर गूगल में सर्च किया, परिणाम देखकर हम तो भावविभोर हो गए. सबसे ऊपर जय-विजय की रचना भी दिख रही है, जहां राजकुमार भाई एक स्थापित लेखक हैं और यह ब्लॉग ”लेखक बनने की बधाई: राजकुमार कांदु भाई” भी. मज़ा आ गया.

  • Man Mohan Kumar Arya

    आपकी सशक्त लेखनी से श्री राज कुमार कांदू जी का परिचय अच्छा लगा। सादर।

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, हमें भी आपकी प्रोत्साहक प्रतिक्रिया बहुत अच्छी लगी. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन , राजकुमार जी तो पहले से ही लेखक थे , भले ही वोह किसी पत्रिका में पर्काशित करने के लिए रचनाएं ना भेजते रहे हों . जितना उन्होंने लिखा है, उस से लगता है, हमें बहुत कुछ मिलने वाला है .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. राजकुमार भाई आपकी तरह पहले से ही बहुत अच्छे लेखक थे, यह हमें उनकी पहली ही प्रतिक्रिया से पता लग गया था. अब वे आपकी ही तरह स्थापित लेखक बन गए हैं. इस हौसले के लिए वे बधाई और शुभकामनाओं के पात्र हैं. एक सटीक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

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