कविता

तिरंगा

मैं हूँ काशी मैं ही साँची
मैंने रामायण भी बाँची

मैं गीता का परम ज्ञान हूँ
मैं राणा का स्वाभिमान हूँ

मैं सिखलाता राष्ट्र कि भक्ति
मैं हूँ बजरंगी की शक्ति

मैं हूँ तुलसी मीर कबीरा
मैं हूँ गालिब सूर व मीरा

मानो तो मैं चारो धाम हूँ
मैं ही बापू मैं कलाम हूँ

मैं हूँ वीर शिवा सा चातुर
मैं ही हूँ वो लाल बहादुर

मैं अटल सा कवी कमाल  हूँ
मैं ही पंडित दीन दयाल हूँ

मैं ही बंकिम चंद चटर्जी
मैं ही हु बेबाक मुखर्जी

मैं ही  हूँ झांसी की रानी
मैं आज़ाद की हूँ कुर्बानी

मैं ही तो वो सत्यमेव हु
राजगुरु हु  मैं सुखदेव हूँ

मैं ही हूँ अशफाक़ व बिस्मिल
मैं हूँ भगत सरीखा खुशदिल

मैं सावरकर जी की आस हूँ
मैं ही तो वो वीर सुभाष हूँ

मुझमे शक्ति लोकतंत्र की
मैं अभिव्यक्ति हूँ गणतंत्र की

मुझको तीन रंग मत जानो
जीने का हु ढंग मैं मानो

मुझको मत बांटो धर्मो मे
आत्मसात कर लो कर्मो मे

अर्थ तो मेरा जुदा जुदा है
मुझमे रब भगवान खुदा है

भगवा घोतक स्वाभिमान का
हरा रंग है जय किसान का

स्वेत रंग सा रखो मन को
और चक्र सा करो वतन को

डोर जो लटकी मेरी जान है
मुझको जीते जय जवान है

पावनता मे हूँ मैं गंगा
मैं भारत की शान तिरंगा

मनोज”मोजू”

मनोज डागा

निवासी इंदिरापुरम ,गाजियाबाद ,उ प्र, मूल निवासी , बीकानेर, राजस्थान , दिल्ली मे व्यवसाय करता हु ,व संयुक्त परिवार मे रहते हुए , दिल्ली भाजपा के संवाद प्रकोष्ठ ,का सदस्य हूँ। लिखना एक शौक के तौर पर शुरू किया है , व हिन्दुत्व व भारतीयता की अलख जगाने हेतु प्रयासरत हूँ.

One thought on “तिरंगा

  • अर्जुन सिंह नेगी

    सुन्दर कविता के लिए बधाई

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