कविता : व्यंग है श्राद्ध
कौवों को दान दिए श्रद्धा से आ आ किये
क्यों कि उसके कांव कांव को मनहूस मानते रहे ,
मुंडेर पे बैठा नहीं कि चल हट भाग हुड़के
गाय प्यारी क्यों है मरखा न हो
गाय जैसी बहु खोजते रहे
दमन करना आसान मिले
घर में जकड़ ना सके तो
गली गली भटकने छोड़ ही सके
कौआ गाय नदियां क्यों चाहिए श्राद्ध के लिए