हास्य व्यंग्य

हास्य-व्यंग्य : क्योंकि हम देश-भक्त हैं!!!

हमारा देश, देश-भक्तों के देश है। हमें प्राथमिक कक्षाओं से प्रतिज्ञा करवाई जाती है “ भारत, हमारा देश है। …..हमें अपना देश प्राणों से भी प्यारा है।“ आदि-आदि। बड़े होने पर हमें जब भी अवसर मिलता है हम समय-समय पर क्रिकेट मैच जीतने पर खूब बम-फटाके फोड़ कर अपनी देश-भक्ति का परिचय देते हैं। पाकिस्तान को पराजित करने पर हमें वह खुशी मिलती जिससे सिकंदर महान वंचित रह गया था। विश्व-विजेता बन जाते हैं उस दिन हम। पर क्या करें? हमें हमारे बच्चों का भविष्य भी तो देखना है! जो किसी विदेशी भाषा से शिक्षा प्राप्त करने मेँ छिपा है। इसलिए हम अपने बच्चों को विदेशी भाषा मे शिक्षा दिलवाना अनिवार्य समझते हैं। भले ही वे उस भाषा मेँ अपने भावों को अभिव्यक्त न कर पाएँ। पड़ोसी का बच्चा अमेरिका मेँ नौकरी करे और हमारा यहाँ घाँस छिले! छी-छी!! इससे बड़ा राष्ट्रीय अपमान एक आदर्श भारतीय के लिए क्या हो सकता है? आधुनिकता की दौड़ मे हम पिछड़ गए तो क्या! देश पिछड़ जाए तो क्या? हमारा बच्चा नहीं पिछड़ना चाहिए। भाई! आखिर हम भी देश-भक्त हैं!
हम उच्च–शिक्षित हैं। हमें पता है की कैसे नकल मारकर, प्रतियोगिता परीक्षाओं के प्रश्न-पत्रों को खरीद कर, उत्तर-पुस्तिकाओं के जांचकर्ताओं को घूस देकर हमने सफलता प्राप्त की। आधुनिक युग मेँ छल-प्रपंच करने के सारे तौर-तरीके जानते हुये भी हम पिछड़े हैं। लेकिन क्या करें हमारी जात आज भी पिछड़ी है। हमारी चुराई हुई योग्यता (अयोग्यता) की सच्चाई जानते हुये भी हम जातिगत आरक्षण का लाभ लेने को मरे जा रहे हैं, जिसके कि हम लायक नहीं। क्यों? क्योंकि किसी ने हमारे संविधान मे दशकों पहले लिख दिया है, और साहब हम देश-भक्त भी तो हैं!!
हम से अधिक सहनशील प्रजाति सारे संसार मे अगरबत्ती लेकर ढूँढने से भी नहीं मिलेगी। भविष्य मे भारतीय कौम को संसार के विभिन्न अद्भुत वस्तुओं के संग्रहालयों मेँ डायनासोर की बगल मेँ सहज कर रखा जाएगा। भावी पीढ़ी देख कर दांतों तले अंगुलियाँ दबाएगी की “हाय दद्दा! कितना विचित्र प्राणी रहा होगा ये! जिसके शत्रु देश उसके बाशिंदों की गरदन काट कर ले जाता था, घर मे घुस कर उसके सैनिकों को मौत के घाट उतार देता था लेकिन इनकी सहनशीलता देखो, वाह!” विश्व-स्तर पर हमारे खिलाफ षडयंत्र रचता है हमें छल से पराजित करनेवाला चपटा-चीनी देश। लेकिन हम घटिया स्तर की बननेवाली उनकी वस्तुओं को शान से खरीदकर न सिर्फ अपने बच्चों को खेलने देते हैं बल्कि उससे त्योहारों पर अपना घर सजाते हैं। क्यों? क्योंकि वे सस्ती हैं। हम गरीब हैं। चार पैसे बचेंगे तो काम मे आएंगे। पैसे बचाने के लिए क्या हम अपनी माँ-बहनों को बाजार मे लगा देंगे? लेकिन हम खरीदते हैं। क्यों? क्योंकि हम देश-भक्त हैं!!!
हमारे दिल मेँ आक्रोश है धमनियों मेँ लावा फूट रहा है जो पाकिस्तान को पानी बनाकर सिंधु मेँ बहा देगा। हम उनको छठी का दूध याद दिला देंगे, उनकी ईंट से ईंट बाजा देंगे, उनके दांत खट्टे कर देंगे,नाकों चने चबवा देंगे। हम सब कर देंगे। हम राणा, शिवा ,आज़ाद, सुभाष, भगतसिंह, दुर्गावती और लक्ष्मीबाई की संतान हैं। हम वीर प्रसूता और जनक हैं। लेकिन अपने बच्चों को सेना मे कैसे भेंजे? बुढ़ापे मेँ हमारी देखभाल कौन करेगा? हमारा श्राद्ध कौन करेगा? हमार तर्पण कैसे होगा? हमें मुक्ति कैसे मिलेगी? हम भारतीय संस्कृति के रक्षक हैं। क्यों? क्योंकि हम देश-भक्त हैं!!!!
हम धर्म पारायण लोग हैं । समय आने पर पूजा-रोज़े-उपवास सब करते हैं। अपने धर्म की रक्षा के लिए दूसरे धर्मों की ऐसी-तैसी भी करना जानते हैं। सरकारी कर्मचारी हुये तो जम के रिश्वतख़ोरी और भ्रष्टाचार करते हैं। व्यापार मेँ मुनाफा लाखो-करोड़ो का कमाते हैं लेकिन टैक्स भी जम से चुराते हैं। हमने कहा न हम धार्मिक लोग हैं। भगवान सब देखता है। इसलिए हम मंदिरों मे दान करते है। भंडारों मे भोजन करवा देते हैं। हम पुण्य-आत्मा जो ठहरे। देश की आयकर की झोली मेँ हम अपनी मेहनत का पैसा नहीं डालते। क्यों डालें? हम पाकिस्तान को गाली बक सकते हैं। टैक्स नहीं दे सकते। क्यों? क्यों कि हम देश-भक्त हैं!!!!
कभी-कभी लगता है “देश-भक्ति” कोई दैनिक टीवी धारावाहिक, मौसमी आम, किसी पत्रिका के मासिक या दैनिक विशेषांक से अधिक कुछ नहीं, जो स्वतन्त्रता-दिवस और गणतन्त्र-दिवस पर आरोहण के समय आसमान पर चढ़नेवाले तिरंगे के समान आसमान पर चढ़ जाती और अवरोहण के साथ-साथ उतर जाती है। क्यों? क्योंकि “हम देश-भक्त हैं!!!!!”

शरद सुनेरी