किसान
दूर तक निहारती अखियां यह उदास।
मेघा कब बरसेंगे बुझेगी धरती की प्यास।
पल -पल बड़ती है चिन्ता किसान की ;
बोझ तले दबा है जीवन और यह दास।
तुमसे मेघा थोड़ी सी मदद चाहता हूँ ;
न होगी फसल अच्छी तो टूटेगी आस।
आओ तुम और जाओ बरस – बरस ;
दिल से करता हूँ हार कर अरदास।
जो न हुई फसल तो कैसे कर्ज चुकाऊंगा ;
खत्म होगा जीवन और होगी खत्म सांस।
कामनी गुप्ता ***
जम्मू !