कविता

एक सुकून का पल

चलो अब छोडते है दूनियादारी
कुछ दिन अकेले ही रहना सिखते है
बहुत रही भीड भाड में
बहुत निभा ली रिश्तेदारी
बहुत बनाये दोस्त
बहुत संभाली जिम्मेदारी
अब ये बोझ और न उठा पाऊँगी
क्योकि झेलने पडते है परेशानी
कष्ट उस समय और बढ जाती है
जब अपने ही दोस्त भूल जाते है
अपने ही रिश्तदार मूँख मोड लेते है
जब अपनो की जरूरत होती है
तो ऐसे नाम मात्र के लिये
रिश्ते की क्या जरूरत
ऐसे दोस्त बनाने से क्या मतलब
जब एक दूसरे के दुःख-सुख में
शामिल ही न हो
ऐसी जिम्मेदारी संभालने से क्या फायदा
जब आपका कोई नाम ही न हो
नही चाहिये मुझे ऐसे दोस्त
नही चाहिये मुझे ऐसे रिश्ते
नही निभाना मुझे ऐसा जिम्मेदारी
बस मुझे अब चाहियें
एक सुकून का पल
जिसमे न रिश्ते का दिखावा
नही दोस्तो का साथ
और नही जिम्मेदारी का बोझ
बस मुझे चाहिये तो एक सुकून का पल
हा एक सुकून का पल|
     निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४