कविसम्मेलनों का गिरता स्तरः दोषी कौन ?
वर्तमान समय के कवि सम्मेलनों में जो हो रहा है।जिस प्रकार की कविता पढ़ी जा रही है। अच्छा नहीं कहा जा सकता। पिछले एक दशक से कवि सम्मेलन की कविता का स्तर गिरा है। कवि सम्मेलनों में चुहलबाजी, चुटकुलेबाजी, बेढंगी कविताओं का बोलबाला बढ़ा है।दर्शक भी हल्के मनोरंजन वाली, टाइमपास कविता चाहने लगा है।कईबार इस हल्के मनोरंजन के चक्कर में कवि सम्मेलनों में एक -दूसरे की खिंचाई करते -करते ही कार्यक्रम सम्पन्न हो जाता है।अच्छी, गम्भीर कविता व गीत लोगों के गले नहीं उतर रहा है।हास्य-वयंग्य के नाम पर दर्शकों को जो दिया जा रहा है।वास्तव में वह देने योग्य है ही नहीं।मनोरंजन तालियां बटोरने के नाम पर कई बार महापुरुषों, दूसरे सम्प्रदायों पर छींटा-कशी भी कर दी जाती है।भले ही इसे कुछ देर के लिए तालियां मिल जायें; परन्तु यह अच्छा नहीं माना जा सकता और न ही अपने आपको कवि माने -जाने वाले को यह कार्य करने चाहिए।
अब प्रश्न उठता है कि कवि सम्मेलनों की भटकी दिषा व प्रभावित दशा के लिए उŸारदायी कौन है ? तो निष्चय ही इस सब हेतु श्रोता व कवि दोनों ही दोषी हैं। इसमें भी कवि का दोष अधिक है। वह इसलिए भी ; कि उसको समाज का हृदय भविष्य निर्माता,दिशाबोधक, राष्ट्र को जीवन्तता देने वाला माना जाता है।उसने श्रोताओं का स्तर उठाने के स्थान पर अपने स्तर को गिरा दिया।अपनी कविता को समाज व राष्ट्र की आवश्यकताओं के अनुसार दिशा न देकर श्रोताओं के अनुसार मोड़ दिया।तालियां तो सुनायी दी, मंच मिले, पर कविता कहां जा रही है यह दिखलाई नहीं दिया।इसमें भी अतिशीघ्र लोकप्रियता की लालसा, अधिकाधिक तालियां बटोरने, मंचों के माध्यम से पैसा जुटाना रहा हो सकता है।कुछ कवि पैसे को महत्व देते हैं कुछ कविता को।पैसे वाला अधिक पैसे वाले मंच पर ही जायेगा।भले ही आयोजकों को कितनी ही हानि क्यों न उठानी पड़े कुछ आयोजक अपने इष्ट मित्रों को मंचों पर स्थापित करने -कराने के लिए एक -दो मंचीय स्थापित कवियों को बुला लेते हैं और अपने चहेतों को महाकवि, मूर्धन्य, राष्ट्रीय कवि बतलाकर श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत कर देते हैं।
कई बार ऐसा पूरा कवि सम्मेलन ही हंसी का पात्र बन जाता है।कुछ वर्षों पूर्व पुवायां (षाहजहांपुर) में एक कवि सम्मेलन में एक स्थानीय कवि (तथाकथित) को मंच के स्थापित कवियों के साथ कविता पढ़वाने के प्रयास में हंसी का पात्र बनवा दिया गया था।श्रोता भगाओ -भगाओं कह गालियां दे रहे थे।बीते सालों के फरवरी माह मे ही मेेरे गांव में एक विराट कविसम्मेलन (आयोजकों के अनुसार) में बाहर से तीन शेष बीस-पचीस स्थानीय कवि ही थे।बाहर के कवियों को सुनने के बाद पाण्डाल खली हो चुका था।तो कहने का तात्पर्य यही है कि कविसम्मेलनों का स्तर गिराने में वह लोग भी जिम्ेमेदार हैं जो अपने चहेतों को कविता कराने के नाम पर कविता का गला घोट रहे हैं उन्हें कविता करने का अवसर देकर मंचीय लोकप्रियता दिलवाना चाहते हैं। भले ही उनको कविता का क ख ग भी न आता हो।कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा जोड़ा हो।
आये दिन मीडिया चैनलों पर बेतुके कविसम्मेलन, गोष्ठियां जैसे कवि लड़ाई, कवि मुकाबला आदि भी कविता को प्रभावित कर रहे हैं।सरकारी चैनलों पर पद, प्रतिष्ठा, सŸाा के समीप वाले ही अधिकांश पहुंच पाते हैं। इसलिए वहां पर भी सब कुछ ठीक -ठाक नहीं कहा जा सकता।वास्तव में इने -गिने कवियों, मंचों व संस्थाओं को छोड़ दें तो कविता व कवि सम्मेलनों की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती। इसलिए सभी को स्वमूल्यांकन की आवष्यकता है।सोचना है जिस कविता के लिए जी रहे हो।जिसने पहचान दी है।कल इतिहास का पृष्ठ बनायेगी।उसका स्तर इतना गिरा दिया।निश्चय ही अभी भी समय है मंचीय कवियों, आयोजकों व श्रोताओं के लिए।वह कविता का स्तर और गिरने से रोकें।कविता के लिए पैसे -मंच की लोकप्रियता को महत्व दें।तालियों की अपेक्षा करें; लेकिन कविता को सर्वोच्च मानकर।उसके स्तर से कोई समझौता न करते हुए।तभी कवि सम्मेलनों की दशा व दिशा को सकारात्मक उपचार दिया जा सकता है।