मेरी कहानी 179
पिरामिड देख कर लगा, जैसे मेरी सारी जिंदगी की भूख ख़तम हो गई थी क्योंकि उन दिनों मुझे डाकूमैंटरी देखने का बहुत शौक होता था। बीबीसी ही हम ज़्यादा देखते थे और भारती चैनल उन दिनों बहुत कम होते थे। वैसे भी उन दिनों दो बीबीसी चैनल और दो ए टीवी के चैनल ही होते थे, जिन पे हर शनिवार को रैसलिंग देखा करते थे और रात को लेट नाइट ड्रैकुला की फिल्म देखते थे जिस में विंस्टन प्राइस और क्रिस्टोफर ली की ऐक्टिंग बहुत पसंद किया करते थे। ट्रैवल डाकुमेंट्रीयां देख देख मन में इच्छा थी कि जब रिटायर होंगे तो वर्ल्ड वाइड घूमेंगे लेकिन यह हो ना सका। पिरामिड देख कर जब हम कायरो शहर में घूम रहे थे तो शहर बहुत सुन्दर और साफ़ दिखाई देता था। एक पार्क में अब्दुल गमल नासर का बहुत ऊंचा बुत्त दिखाई दे रहा था। मैं सोचने लगा कि इस्लाम में तो बुतपरस्ती की मनाही है, फिर यह कैसे इस पार्क में खड़ा कर दिया गया। इस से मुझे महसूस हुआ कि इजिप्ट के लोग काफी आगे हैं। टैक्सी वाला रास्ते में बहुत कुछ इतिहास की बातें बता रहा था लेकिन अब याद नहीं। रास्ते में एक बहुत बड़ा महल जैसा मकान था, जिस के बारे में उस ने बताया कि यहां कोई शाही शेख रहता था जो इंकलाब के वक्त यहां से भाग गया था क्योंकि यहां बम्ब चलाये गए थे। घुमते घूमते हमारी टैक्सी एक होटल के बाहर आ कर खड़ी हो गई। यह काफी बड़ा होटल था। होटल के भीतर हम चले गए। यहां हम ने लंच लेना था।
हमारे जाने से कोई दस मिंट बाद ही खाने के लिए लाइन लग्ग गई। यहां भी होटल में आये ज़्यादा गोरे ही थे। एक बात से हम खुश थे कि यहां सैल्फ सर्विस ही थी। सैल्फ सर्विस का एक फायदा होता है कि मन पसंद खाना प्लेट में डाल सकते हैं। एक टेबल पर तरह तरह की चटनियाँ सौस बगैरा की बोतलें रखी हुई थीं जिन में मेरे मन पसंद चिली सौस की पतली सी बोतल भी पडी थी जो इंग्लैंड की बनी हुई थी। अब तो कई सालों से यह चिल्ली सौस का मैंने तियाग किया हुआ है लेकिन उस वक्त यह सौस हम घर से ख़तम नहीं होने देते थे। प्लेटें भर के हम टेबल पर आ गए और खाने का मज़ा लेने लगे लेकिन एक बात से मेरे मन में कई विचार आने लगे। होटल के बाहर कुछ औरतें बड़ी बड़ी रोटियां भट्टी पे पका रही थीं। ऐसी बड़ी बड़ी रोटियां अरब देशों में आम बनती हैं। बात तो कोई अजीब नहीं थी लेकिन मेरे मन में अमीरी गरीबी का अंतर दीख रहा था। इन औरतों के कपडे गाँव की औरतों जैसे, सही गरीबी को दर्शा रहे थे। मैंने तो यह सब देखा हुआ था लेकिन अपने इर्द गिर्द इतना महंगा भोजन खाते देख कर, पता नहीं मन में कुछ कुछ होने लगता था। खैर, भोजन के बाद हम बाहर आ गए और गाड़ी में बैठ कर ताहिर सुकेअर की तरफ जाने लगे क्योंकि यहां ही दुनिआं के बड़े मयूज़ियम की लिस्ट में कायरो का मयूज़ियम है।
कायरो की बड़ी बड़ी सड़कें और बिल्डिंग्ज़ को देखते हुए कुछ ही मिनटों में हम मयूज़ियम के नज़दीक आ गए। हमें टैक्सी से उतार कर ड्राइवर कहीं चला गया। इस सुकेयर के चारों ओर हम ने नज़र दौड़ाई, बड़ी बड़ी बिल्डिंग के बीच यह एक बड़ा मैदान दीख रहा था। यह लिखना भी भूलूंगा नहीं कि पांच साल पहले २०११ में इसी सुकेयर में प्रैजीडैंट होस्नी मुबारक के खिलाफ प्रदर्शन हुए थे और इस इंकलाब में बहुत लोग मारे गए थे और इस मयूज़ियम के बहुत से आर्टिफैक्स बर्बाद और चोरी कर लिए गए थे। हमारी गाइड लड़की ने टिकट लिए और हम आगे चल पड़े। अब का तो मुझे पता नहीं लेकिन उस वक्त हम ने किसी भी औरत को बुर्के में नहीं देखा था, गरीबी अमीरी तो सब देशों में है लेकिन मुझे औरतें इंडिया जैसी पडी लिखी और एक आज़ादाना लिबास में दिखाई दीं। जैसे इंडिया में मुस्लिम औरतें घूम रही हैं, इसी तरह इजिप्ट में औरतों को घुमते देखा था। मयूज़ियम के भीतर हम चले गए। दोनों तरफ हम देखते जा रहे थे। पुराने फैरो, उन की राणीआं और फिलासफरों के बड़े बड़े बुत्त रखे हुए थे जो इतने बड़ीआ और एक दम पॉलिश किये हुए थे कि देख कर हैरानी होती थी, कि उस समय जब मशीनें भी नहीं होती थीं तो इतनी अछि सफाई कैसे की गई होगी। हमारी गाइड लड़की के पास एक टौर्च थी और वोह हमें इन स्टैचुओं को बड़ी डीटेल से दिखा रही थी। फिर उस ने एक स्टैचू जो किसी बहुत बड़े फिलॉस्फर का था, इतना बड़ीआ था कि लिखना मुश्किल है। उस लड़की ने रौशनी उस की आँखों पर डाली और हमें इसे धियान से देखने को बोला। आँखें एक दम नैचुरल, जैसे हर शख्स की होती है, इसी तरह थी। आँखों की बारीक बारीक नसें बिलकुल असली दिखाई दे रही थी।
बुत्त देखते देखते हम एक ऐसे कमरे में आ गए, यहां फैरो के चैरियट यानी रथ रखे हुए थे, जिन पर बेतहाशा सोना लगा हुआ था और यह बहुत ही सुन्दर थे। एक कोने में बहुत ही बड़ा एक संदूक पड़ा था और यह भी सोने से ही डैकोरेट किया हुआ था, इस संदूक में बादशाह की कीमती जीऊलरी रखी होती थी। लड़की ने बताया कि इसी संदूक में और भी संदूक हैं। एक तरफ सोने की कुर्सी पडी थी जिस के आर्म रेस्ट सोने के शेर बनाये हुए थे। एक तरफ सोने की चारपाई जो काफी बड़ी थी और इस का पैरों वाला हिस्सा, सर वाले हिस्से से कोई छै इंच ऊंचा होगा। लड़की ने बताया कि यह इस लिए था कि वोह लोग जानते थे कि सोते समय इस से सर को खून की सप्लाई बराबर जाती रहेगी। एक बहुत बड़ा हाल था, जिस में ऐसी बहुत ही कुर्सियां मेज़ और आज कल के कॉफी टेबल जैसे छोटे छोटे टेबल थे। आगे गए तो उस समय यानी तीन चार हज़ार साल पहले के लोग कितने शौक़ीन होंगे क्योंकि वहां रखी हुई आम लोगों की चपलें बहुत फैशनदार थीं। कुछ चमड़े की थीं और कुछ सोने चांदी की जो बड़े लोगों की ही होंगी। फैशनदार बड़ी बड़ी कंघियाँ जिन में गैप ऐसे था जैसे आज की लंबी लंबी कंघियों में कुछ दांत बारीक बारीक होते हैं और कुछ दांत खुल्ले खुल्ले। जीऊलरी तो इतनी थी कि शैल्फें ही शैल्फें भरी पडी थीं। बस देखने वाली बात तो यह थी कि उस ज़माने में कैसे बनाते होंगे।
मयूज़ियम लोगों से भरा हुआ था और इन में ज़्यादा बिदेशी लोग ही थे। जल्दी जल्दी देखते भी हमें आधा घंटा हो ही गया था । लड़की ने बताया कि अगर मयूज़ियम की एक एक चीज़ देखि जाए तो एक साल लग जाएगा और इस में मुझे कोई हैरानी वाली बात भी नहीं लगी क्योंकि यह मयूज़ियम है ही इतना बड़ा था । मैंने लंडन का ब्रिटिश मयूज़ियम भी देखा हुआ है और मुझे यह मयूज़ियम उस से कोई कम दिखाई नहीं दिया बल्कि ज़्यादा बड़ा ही होगा। अब हम दुसरी मंज़िल पर आ गए। यह मंज़िल बादशाहों के कॉफिन यानी बड़े बड़े बक्सों से ही भरी हुई थी। इन बक्सों में फैरो के मम्मियां यानि कपड़ों से लिपटी हुई लाशें रखी हुई होती थीं लेकिन अब यह खाली थे क्योंकि लाशें कहीं और जगह रखी हुई होंगी, यह मुझे पता नहीं। देखने वाली बात तो यह थी कि यह कौफिन इतने खूबसूरत रंगों से पेंट किये गए थे की हैरानी होती थी। हर कॉफिन के ऊपर उस की तस्वीर बनी हुई थी, जिस की लाश इस बक्स में रखी हुई थी। बहुत बक्सों के नीचे उन के नाम लिखे हुए थे जो याद रह ही नहीं सकते क्योंकि यह है ही इतने थे।
अब सब से ज़्यादा जो चीज़ हमारे लिए माने रखती थी, वोह थी तूतनख़ामुन की ममी का ताबूत जिस को हावर्ड कार्टर ने वैली ऑफ दी किंग्ज़ लुक्सर में से ढून्ढ निकाला था और जिस के लिए वोह तकरीबन बैंकरप्ट होने को था। आगे के कमरे में जब गए तो वहां लोग धड़ाधड़ फोटो खींच रहे थ और कुछ वीडियोग्राफी कर रहे थे। बड़े बड़े शीशों में रखा तूतनख़ामुन का बॉक्स और एक तरफ सोने से बना हुआ उस का खूबसूरत मास्क एक स्टैंड पर रखा हुआ था। यूँ तो हम ने बहुत बढ़िया बढ़िया ऐसे बॉक्स देखे हुए थे लेकिन इस से सुन्दर कोई नहीं देखा था। यह बॉक्स, जिस में उस का शरीर मिला था, उस का ऊपर वाला ढकन इतना सुन्दर था कि बताना ही मुश्किल है। सर पे उस समय का ताज रखे और दोनों कलाइयों को एक दुसरी के ऊपर रखे, दोनों हाथों में दो सोने की कोई दो फ़ीट लंबी खूँटियाँ पकडे, ऐसा लगता था जैसे वोह शाही लिबास में लेटा हुआ हो। आँखें ऐसी बनी हुई थीं जैसे किसी बिउटी पार्लर में मेक अप्प किया गया हो। यह सारा बॉक्स, क्योंकि इतने हज़ार सालों से किसी ने इस को छुआ भी नहीं था, बिलकुल ऐसे लगता था जैसे नया नया ही बना हो। दुसरी ओर एक शीशे के स्टैंड पर जो सर वाला हिस्सा रखा हुआ था, ऐसे दिखाई देता था जैसे किसी शो पीस की बड़ी दूकान में रखा हो। एक दूसरे के ऊपर से लोग फोटो ले रहे थे। मैंने यहां काफी वीडियो बनाई और जसवंत ने भी बहुत फोटो खींची। कोई पंदरां मिंट यहां हम ठैहरे और आगे चल पड़े। यह मयूज़ियम तो ख़तम होने को ही नहीं था क्योंकि जिधर भी जाते, नई नई चीज़ें देखने को थीं। सोने के इतने आर्टीफैक्ट थे कि ख़तम होने को नहीं थे।
फिर हमारी गाइड लड़की ने बताया कि आगे एक कमरे में रामेसज़ फर्स्ट सैकंड और थर्ड की मम्मीज़ यानी उन के पिंजर रखे हुए थे। इस में जाने के लिए हम को टिकट खुद खरीदना था। लाइन में खड़े हो कर हम ने टिकट लिए और एक बड़े कमरे में चले गए, इन में कैमरा ले जाना मना था । इस से आगे कुछ और कमरे निकलते थे। शीशे के बक्सों में यह पिंजर रखे हुए थे। एक एक को धियान से हम ने देखना शुरू किया। हर बॉक्स के ऊपर मुख़्तसर इतिहास इंग्लिश में टाइप किया हुआ था। यूँ तो हम ने ऐसी ममीज़ लुक्सर में भी देखि थीं लेकिन इन का इतिहास ज़्यादा महत्व रखता था क्योंकि इन्होंने इजिप्ट पर कभी राज किया था। यह लाशें सूखी हुई तो थीं लेकिन साथ में सकिन भी ऐसे दिखाई देती थी जैसे कोई मुर्दा सूख गया हो, झुरीयाँ दीख रही थीं । इन के सारे शरीर पर कोई चार इंच चौड़ी खादी जैसी पट्टी लिपटी हुई थी जो पता नहीं कितने हज़ार गज़ लंबी हो क्योंकि सारे शरीर को इस से ढकना भी काफी मिहनत और वक्त ले सकता है। सर के बाल जम्मे हुए थे लेकिन इतने हज़ार साल बाद भी ठीक दिखाई दे रहे थे। इन कमरों में बादशाहों, उन की रानियां, उन के बचे और नौकरों की लाशें थीं। काफी देर हम यहां रहे और फिर बाहर आ गए। आगे गए तो एक बहुत बड़ा हाल था, जिस में बड़े बड़े लाल ब्राऊन और काले पत्थरों के स्टैचू थे। इतने साफ़ पॉलिश और अच्छे थे कि सिर्फ देखने से ही इस की तारीफ़ की जा सकती है। देखा तो बहुत कुछ था लेकिन अब बहुत कुछ भूल गया है और हम बाहर आ गए। ड्राइवर हमें एक बाजार में ले आया और हमें शॉपिंग करने के लिए वक्त दे दिया। उस लड़की का काम ख़तम हो गया था और बाई बाई कह कर वोह चली गई।
अब हम दुकानों के चक्कर लगाने लगे, वोह गोरा गोरी किसी और तरफ चले गए। कुछ दुकानें तो आम जैसी थीं लेकिन एक जगह आये तो वहां हुक्के ही हुक्के थे और तरह तरह के रंगदार पैकट शैल्फों पर रखे हुए थे, जाहर था इन में बहुत किस्मों का तंबाखू होगा। सिख तो तंबाखू का सेवन करते नहीं लेकिन हम सिर्फ उत्सुकता के कारण इन दुकानों में झाँकने लगे। हुक्के तो हम ने बचपन से ही देखे हुए थे लेकिन इन में देखने की बात यह थी कि यह हुक्के इतने शानदार दिखाई दे रहे थे कि दिल चाहता था, सिर्फ शो पीस के लिए ही खरीद लें लेकिन यह भी मुमकिन नहीं था क्योंकि कुलवंत तो इस को इतनी नफरत करती कि इस को देखते ही बाहर फैंक देती। सिख धर्म में बचपन से ही हमें यह सिखाया गया था कि इस को छूना ही पाप है। यह हुक्के बहुत कलरफुल थे, तरह तरह के डिज़ाइन और इन की नलियाँ बहुत लंबी लंबी फ्लैक्सीबल दिखाई दे रही थीं, हो सकता है जब बहुत लोग घर में हों तो सभी इस का सेवन करने का लुत्फ ले सकें। इन पर रखी हुई चिलम भी देखने में खूबसूरत लगती थी, चिलम के ऊपर सुन्दर चांदी या किसी और रंग का ढक्कन और इन के साथ छोटी छोटी सुन्दर चिमटियां लटक रही थीं। हुक्के की सभी नलियों पर कई रंगों की मीनाकारी कमाल की लग रही थी। इन को देखते देखते मुझ को बचपन की याद आ गई, जब मैंने एक मुसलमान बुढ़ीया के घर जा कर हुक्के में जोर से फूंक मारी थी और सारी राख दूर दूर तक चली गई थी। दुकानदार हमारे हाथ पकड़ कर और डिज़ाइन दिखाने की ज़िद कर रहे थे, बड़ी मुश्किल से हम ने पीछा छुड़ाया और आगे चल पड़े। कई छोटी छोटी चीज़ें हमें पसंद आईं और हम ने खरीदीं। एक लड़का, जो घड़ीआ बेच रहा था, हमारे पीछे ही पढ़ गया और घड़ियां दिखाने लगा लेकिन इन की कीमत वोह बहुत बताता। मैंने अपनी घड़ी उतार कर उस को दिखाई और कहा कि यह घड़ी मैंने इंडिया से सिर्फ पांच पाउंड में खरीदी थी, सुनते ही वोह वहां से चल दिया। मैंने तो यूँ ही उस को झूठ बोला था, दरअसल तो यह घडी मैंने पचास पाउंड में इंगलैंड में ही खरीदी थी। जसवंत बोला, ” मामा ! पीछा छुड़ाने का ढंग अच्छा लगा “, हंसते हंसते हम आगे चल पड़े।
कुछ देर बाद ड्राइवर आ गया, वोह थक्का थक्का सा लग रहा था और हमें गाड़ी में बैठने को बोला। गाड़ी में बैठ कर चलने लगे और कुछ आगे जा कर वोह गोरा गोरी जो एक दुकाँन में से निकले ही थे, बैठ गए और गाड़ी कायरो की सड़कों पर घूमने लगी। रास्ते में वोह कई मस्जिदों की ओर इच्छारा करके उन का इतिहास बताता लेकिन मुझे अब कुछ भी याद नहीं कि वोह किया किया था। कुछ ही देर बाद गाड़ी एअरपोर्ट की तरफ जाने लगी और हमें एअरपोर्ट के साइन इंग्लिशः और इजिप्शियन में दिखाई दे रहे थे। जब एअरपोर्ट पर पहुंचे तो हमारी फ्लाइट का वक्त भी होने को था। कैफे में बैठ कर हम ने कुछ खाया और कॉफी का कप्प कप्प पिया। ज़्यादा इंतज़ार हमें करना नहीं पढ़ा। अँधेरा कब का हो चुक्का था। लुक्सर की अनाऊंसमैंट होते ही हम जहाज़ की ओर जाने लगे। कुछ मिनटों बाद ही हम जहाज़ में बैठे आसमान की सैर कर रहे थे। डेढ़ घंटे वक्त ही किया होता है, बातें करते करते ही हम लुक्सर एअरपोर्ट पर थे। हमारा ड्राइवर भी हमारी इंतज़ार कर रहा था और उस की गाड़ी में बैठ कर जल्दी ही हम होटल में पहुँच गए। अब एक ही दिन हमारे पास बचा था। दूसरे दिन हम बहुत घूमें, इन दो हफ़्तों में हमें ऐसा मालूम होने लगा था, जैसे हम इजिप्ट में बहुत देर से रह रहे हों। कायरो जा कर हमें एक संतुष्टि सी हो गई थी कि हमारी हॉलिडे पैसों से ज़्यादा कीमती थी।
सुबह को सभी हॉलिडे मेकरज़ लुक्सर एअरपोर्ट पर पहुँच गए थे। अब सभी के चेहरों पर घर वापस जाने की प्रसन्ता दिखाई दे रही थी। जहाज़ में बैठे गोरे ड्रिंक पी रहे थे और खुश खुश दिखाई दे रहे थे। जब हम मानचैस्टर एअरपोर्ट पर पहुंचे तो अभी भी लौ थी। कुछ ही देर बाद हम अपने अपने घर जब पहुंचे तो लगा, सच ही तो कहते हैं कि बाहर हम जितना मर्ज़ी मज़े कर लें, लेकिन” home sweet home ” ही सही है। चलता. . . . . . . . . .