माया ममता संगिनी
माया ममता संगिनी, मोह हिया अंगार ।
कामी क्रोधी लालची, कब उतरे हैं पार ।
दौलत से अंधे हुए, कौरव जन्मे गेह ।
पाप घड़ा भरने लगा, अजगर जैसी देह ।
शृंगार ——–
पायल पैरों में सजी , गोरी नैना उर बसी ।
मोहन प्यार में थी घायल , कैसी मेरी सखी ।
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’