धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

गौ माता का महत्व

श्री पथमेड़ा गौ तीर्थ  सेवा संस्थान है । जहाँ पर गौ सेवा का पूरा ख्याल रखा जाता है । कहते है की  गौमाता के खुर से उडी हुई धूलि को सिर पर धारण करता है वह मानों तीर्थ के जल में स्नान कर लेता है । और सभी पापों से छुटकारा पा जाता है । पशुओं में बकरी ,भेड़ ,ऊँटनी ,भैंस ,का दूध भी काफी महत्व रखता है । किंतु केवल दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के कारण  भैंस प्रजाति को ही प्रोत्साहन मिला है । क्योकिं यह दूध अधिक देती है व् वसा की मात्रा ज्यादा होती है ,जिससे घी अधिक मात्रा में प्राप्त होता है ।

गाय का दूध गुणात्मक दृष्टि से अच्छा होने के बावजूद  कम मात्रा में प्राप्त होता है ।दूध अधिक मिले इसके लिए गाय और भैंस के दूध निकलने की प्रक्रिया कुछ  लोग क्रूर और अमानवीय तरीके से निकालते  है। गाय का   दूध निकालने से पहले यदि  बछड़ा/बछिया हो तो पहले उसे पिलाया जाना चाहिए ।वर्तमान में लोग बछड़े/बछिया का हक़ कम करते है । साथ ही इंजेक्शन देकर दूध बढ़ाने का प्रयत्न करते है । जो की उचित नहीं है ।
प्राचीन ग्रंथों में सुरभि (इंद्र के पास ) ,कामधेनु (समुद्र मंथन के 14 रत्नों में एक ) ,पदमा ,कपिला आदि गायों  महत्व बताया है । जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर ऋषभ देवजी ने असि ,मसि व् कृषि गौ वंश को साथ लेकर महत्व मनुष्य को सिखाए । हमारा पूरा जीवन गाय पर आधारित है । शिव मंदिर में काली गाय के दर्शन मात्रा से काल सर्प योग  निवारण हो जाता है ।
कहते है की गाय के पीछे के पैरों के खुरों के दर्शन करने मात्र से कभी अकाल मृत्यु नहीं होती है । गाय की प्रदक्षिणा करने से चारों धाम के दर्शन लाभ प्राप्त होता है । क्योंकि गाय के पैरों चार धाम माने  गए  है ।जिस प्रकार पीपल का वृक्ष एवं तुलसी का पौधा आक्सीजन छोड़ते है ।  इस प्रकार यदि एक छोटा चम्मच देसी गाय का घी जलते हुए कंडे पर डाला जाए तो एक टन ऑक्सीजन बनती है । इसलिए हमारे यहाँ यज्ञ हवन अग्नि -होम में गाय का ही घी उपयोग में लिया जाता है । प्रदूषण को दूर करने का इससे अच्छा और कोई साधन नहीं है ।
धार्मिक ग्रंथों में लिखा है “गावो विश्वस्य मातर :”अर्थात गाय  विश्व की माता  है । गौ माता की रीढ़ की हड्डी मे सूर्य नाड़ी एवं केतुनाड़ी साथ हुआ करती है ,गौमाता जब धुप में निकलती तो सूर्य का प्रकाश गौमाता की रीढ़ हड्डी पर पड़ने से घर्षण द्धारा केरोटिन नाम का पदार्थ बनता है ,जिसे स्वर्णक्षार कहते है । यहाँ पदार्थ निचे आकर दूध में मिलकर उसे हल्का पिला बनाता है । इसी कारण गाय के दूध में मिलकर उसे हल्का पीला बनाता है । इसी कारण गाय के दूध का रंग हल्का पीला  बनाता है । इसे पीने से बुद्धि का तीव्र विकास होता है । जब हम किसी अत्यंत अनिवार्य कार्य से बाहर जा रहे हो और सामने गाय माता  के इस प्रकार दर्शन हो की वह अपने बछड़े या बछिया को दूध पिला रही हो तो हमें समझ जाना चाहिए की जिस काम के लिए हम  निकले है वह कार्य अब निश्चित ही पूर्ण होगा ।
 गौ माता का (गोधूलि वेला ) जंगल से घर वापस लौटने का संध्या का  समय अत्यंत शुभ एवं पवित्र है । गाय का मूत्र गौ  औषधि है । माँ शब्द की उत्पत्ति गौ मुख से हुई है । मानव समाज में भी माँ शब्द कहना गाय से सीखा है ।जब गौ वत्स रंभाता है तो” माँ” शब्द गुंजायमान होता है । गौ -शाला में बैठकर किये गए यज्ञ हवन ,जप-तप का फल कई गुना मिलता है । बच्चों को नज़र लग जाने पर गौ माता की पूंछ से बच्चों  को झाड़े जाने से नजर उतर जाती है  । ऐसा उदाहरण पूतना उद्धार में भगवान कृष्ण को  नज़र लग जाने पर गाय की पूंछ से  नजर उतारने का   ग्रँथों में भी पढ़ने को मिलता है ।
गौ के गोबर से स्थान का लीपने  से स्थान पवित्र होता है । गौ -मूत्र का पावन  ग्रंथों में अथर्ववेद ,चरकसहिंता ,राजतिपटु ,बाण भट्ट ,अमृत सागर ,भाव सागर ,सश्रुतु संहिता में सुंदर वर्णन किया गया है । काली गाय का दूध त्रिदोष नाशक सर्वोत्तम है । रुसी वैज्ञानिक शिरोविच ने कहा था कि गाय का दूध में रेडियों विकिरण से रक्षा करने की सर्वाधिक शक्ति होती है । गाय का दूध एक ऐसा भोजन है जिसमे प्रोटीन कार्बोहाइड्रेड ,दुग्ध ,शर्करा ,खनिज लवण वसा आदि मनुष्य शरीर के पोषक तत्व भरपूर पाए जाते है । गाय का दूध रसायन का करता है । ऐसे जानकारियां वैज्ञानिकों शोध की एवं धार्मिक ग्रंथों में दर्शित है
आज भी कई घरों में गाय की रोटी रखी जाती है । कई स्थानों पर संस्थाएं गौशाला बनाकर पुनीत कार्य कर रही है । जो की प्रशंसनीय कार्य है । साथ ही यांत्रिक क़त्लखानों को बंद करने का आंदोलन ,मांस निर्यात नीति का पुरजोर विरोध एवं गौ रक्षा पालन संवर्धन हेतु सामाजिक धार्मिक संस्थाएं एवं सेवा भावी लोग लगातार संघर्षरत है ।
दुःख इस बात का भी होता है की कुछ लोग गाय को आवारा भटकने  बाजारों में छोड़ देते है । उन्हें इनके भूख प्यास की कोई चिंता ही नहीं होती । लोगो को चाहिए की यदि गाय पालने  का शौक है तो उनकी देखभाल भी आवश्यक है क्योकि गाय   हमारी माता है एवं गौ रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है ।
संजय वर्मा “दृष्टी “
125 शहीद भगत सिंग मार्ग
मनावर  जिला -धार (म प्र )

*संजय वर्मा 'दृष्टि'

पूरा नाम:- संजय वर्मा "दॄष्टि " 2-पिता का नाम:- श्री शांतीलालजी वर्मा 3-वर्तमान/स्थायी पता "-125 शहीद भगत सिंग मार्ग मनावर जिला -धार ( म प्र ) 454446 4-फोन नं/वाटस एप नं/ई मेल:- 07294 233656 /9893070756 /antriksh.sanjay@gmail.com 5-शिक्षा/जन्म तिथि- आय टी आय / 2-5-1962 (उज्जैन ) 6-व्यवसाय:- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) 7-प्रकाशन विवरण .प्रकाशन - देश -विदेश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ व् समाचार पत्रों में निरंतर रचनाओं और पत्र का प्रकाशन ,प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक " खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान-2015 /अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित -संस्थाओं से सम्बद्धता ):-शब्दप्रवाह उज्जैन ,यशधारा - धार, लघूकथा संस्था जबलपुर में उप संपादक -काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ :-शगुन काव्य मंच