हास्य व्यंग्य

“यह कैसा कालाधन?”

बेईमानी की कोख में, भ्रष्ट पिता के संसर्ग से उत्पन्न नाजायज संतान को “कालाधन” का सम्मान दिया जाता है। सामान्य जनता के लिए इसका व्यक्तित्व अदृश्य होता है। केवल इसे धारण करनेवाला ही इसे देख सकता है। पर वह उसे कालधन नहीं मानता। वह उसे अपने मेहनत की कमाई कहता है,उसके लिए उसे अतिरिक्त ऊर्जा की खपत करनी पड़ती है। इसलिए भारतीय समाज में इसका विशेष सम्मान होता है। जिस नाजायज़ माता-पिता को यह प्रतिभाशाली संतान की प्राप्ति होती है,वह सभ्य समाज में प्रतिष्ठा का हकदार होता है।जब से होश संभाला है देश के अनेक बदकिस्मतों की तरह मेरा कीमती यौवन काला धन के बारे में सिर्फ सुनते-सुनते ही बीत गया। काला धन कभी देखने नहीं मिल सका। दिल के अरमान हमेशा आंसुओं में ही बहते रहे। काले धन को इस वैज्ञानिक-युग में भी न देख पाने की पीड़ा दिल को सालती रहती। यहाँ-वहाँ से पता चलने पर कि ‘फलाँ के यहाँ काला धन है’ तो हम अपनी उत्सुकता शांत करने उसके दरवाजे तक पहुँच जाते। किन्तु वहाँ बड़े-बड़े बंगले दिखते। उनके आँगन में देशी-विदेशी कारों का जमघट दिखता। सोफ़े पर कुलेलें करते विदेशी कुत्ते-कुतियाँ दिखते। इन कुत्तों को नहलाता-धुलाता, कोई गरीब नौकर दिखता। कभी-कभी इन कुत्तों को प्रातःकालीन सैर के बहाने दीर्घ शंका से निवृत करवाने जानेवाली मेम या सिगरेटके छल्ले उड़ाता कोई ‘जेंटिलमेन’ दिखता। पर साहब काला धन? कभी नहीं दिखा। बहुत नज़र गाड़कर देखने की कोशिश की इस काली लक्ष्मी को,तो कीमती आभूषणों और विदेशी भाषा तथा साज-सज्जा से लदीं अधनंगी मेंमें दिखीं। बस, काला धन देखने के लिए आँखें तरस रहीं थीं और तरसतीं ही रह गईं – अँखियाँ हरि दर्शन की भूखीं।

भक्तों! एक भ्रामक प्रचार कर आपको युगों-युगों से अंधकार में रखा गया है कि देवताओं और दानवों ने सागर–मंथन कर चौदह रत्नों कि प्राप्ति की थी। यह गलत है। उसमे चौदह नहीं, पंद्रह रत्न निकले थे। लक्ष्मी जी के बाद “काली लक्ष्मी” अवतरित हुई थी। लक्ष्मी जी का तो वरण भगवान विष्णु ने कर लिया था, लेकिन जब काली लक्ष्मी भी उनके गले पड़ने लगी तो उसको यह कह कर दुत्कार दिया था कि “तुम्हारा जन्म, कलयुग में भारतवर्ष में होगा और अंग्रेजों से आज़ादी मिलने के बाद उस धराधाम पर तुम विशेष रूप से फूलोगी,फलोगी और फैलोगी। तब इन दानवों को भी उनके इस सागर-मंथन का लाभ मिलेगा। तुम काली लक्ष्मी नहीं कालधन कहलाओगी।“ यह प्रचार भ्रामक है कि सागर-मंथन ‘अमृत’ के लिए किया गया था। वास्तव में सागर-मंथन का उद्देश्य ‘अमृत-प्राप्ति’ नहीं’, कालेधन की प्राप्ति थी, जो इस कलयुग में अब दिखाई दे रही है।

मेरा दुर्भाग्य की कलयुग में पैदा होने पर भी कालेधन को छू न सका। पर कालाधन देखने की यह इच्छा मेरी इहलोक त्यागने पहले ही पूर्ण हो गई। जैसे कृष्ण की कृपा ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में दिव्य-दृष्टि प्रदान कर अपना विश्व-रूप दिखा दिया था। मुझे भी कालेधन को देखने का सौभाग्य प्रधानमंत्री जी की कृपा से मिल गया। कहीं नाले के किनारे काला धन बिखरा पड़ा है, तो कभी पतित पावनी गंगा जी लहरों से आवाज़ आ रही है – राम तेरी गंगा मैली हो गई, पापियों के पाप धोते-धोते। कई लोगों ने तो उसे पेड़ों के तनों मे ठूँस रखा था तो कभी रेलगाड़ियों के शौचालयों मे से काला धन प्रकट हुआ। लाखों की कारों की कोख ने करोड़ों के काले धन को जन्म दे दिया। शयनकक्ष के बिस्तरों की गरमाहट बढ़ाता हुआ, काला धन मिल गया। काला धन न हुआ मानो नृसिंह अवतार हो गया साहब! जहां हाथ मारो वहीं से काला धन प्रकट हो रहा है। अब बिना उंगली किए कालाधन निकल रहा है, लेकिन ए॰टी॰एम के सामने उंगली कर नोट निकालने वाले परेशान हो रहे हैं।

आचार्य चाणक्य का ‘अर्थशास्त्र’ राजनीति से प्रेरित था। आधुनिक अर्थशास्त्र कालेधन पर अवलंबित है। हमारी शिक्षा-व्यवस्था अर्थशास्त्र में धन अर्जित करने के तरीके बताती है। नर्सरी से विश्वविद्यालय तक के किसी पाठ्यक्रम में कालधन कमाने का कोई अध्याय नहीं मिलता। यह देव-विद्या है। बड़ी साधना-सिद्धी से अर्जित की जाती है। भाग्यशालियों के कान में, माँ के गर्भ में उनके पिता इसको अर्जित करने का मंत्र फूँक देते हैं। इतिहास क़हता है कि इंग्लैण्ड भारत को लूट कर, सम्पन्न और समृद्ध हो गया। किन्तु अपने ही देश को लूट कर कैसे समृद्ध बना जाता है, यह हमारा अर्थशास्त्र सिखाता है।

समाज शास्त्र में आदर्श समाज की शिक्षा दी जाती है। सच्चरित्र लड़के से अपनी कन्या का विवाह करना यह आदर्शवादी अवधारणा है।समाज शास्त्र की व्यावहारिक अवधारणा यह है कि जिसके पास कालधन अर्जित करने का जुगाड़ हो, वही लड़का आपकी कन्या के लिए श्रेष्ठ वर हो सकता है। कालेधन में बड़ी ताकत और सामर्थ्य होती है। वह अपने धारक के समस्त अवगुणों को छिपा लेता है। कुरूप को रूपवान बना देता है। असभ्य को सुशील, कुसनसकरी को सुसंस्कृत, दुर्बल को बलवान, पाखंडी को दानवीर, नालायक को लायक, बनाने का सामर्थ्य यदि इस कलयुग में किसी में है तो वह है- कालाधन।

बेटियों को ‘लक्ष्मी’ माननेवाले हमारे देश में ‘पराया-धन’ भी कहा जाता है। काला धन नहीं। किन्तु इस धन से संबन्धित एक खबर ने उस दिन ध्यान खींचा-“लक्ष्मी नगर स्थित एक गटर में से पाँच सौ और हजार रुपये के नोटों की शक्ल मे दस करोड़ का कालाधन बरामद…गटर के पास ही एक नवजात बालिका बिलखती पायी गई।“ मैं समझ न सका – “यह कैसा कालाधन?”

शरद सुनेरी