संस्मरण

मेरी कहानी 189

वीरूपक्ष मंदिर में गाइड हमें एक ऐसे हिस्से में ले गया जो बहुत ही हैरानीकुन था। यह बहुत ही छोटे छोटे कमरों में बंटा हुआ था। एक बहुत ही छोटे से कमरे में किसी देवता की मूर्ती रखी हुई थी, जिस पर फूल की मालाएं थीं और कुछ आगे जा कर जो देखा, वोह पन्द्रवीं सदी की सायेंस का कमाल था। इस कमरे में कोई चार इंच सुकेअर गली ( hole )थी, जिस में से मंदिर का मुख दुआर और नीचे से ऊपर का सारा हिस्सा उल्टा दीख रहा था। यह बिलकुल पहले कैमरों की तरह था जिस को pin hole camera कहते थे और उस में किसी भी इंसान की नैगेटिव फोटो उलटी दिखाई देती थी। यह हैरान कर देने वाली बात थी कि उस समय टैक्नॉलोजी इतनी आगे थी । यहां से निकल कर हम एक तरफ को पीछे चले गए। यहां पत्थर का एक रथ पड़ा था। यह रथ, हमारे गाइड ने बताया कि उस समय बिलकुल चलता था। इस रथ के पहिये और सारे हिस्से बिलकुल एक लकड़ी से बने रथ जैसे थे और इस के आगे दो जानवर बने हुए थे, शायद हाथी के थे, याद नहीं। इस रथ को बताना ही मुश्किल है, सिर्फ देख कर ही महसूस किया जा सकता है। यह रथ बहुत फिल्मों में भी दिखाया गया है क्योंकि यहां शूटिंग हुई होगी। इसी जगह में और भी बहुत मंदिर थे। एक मंदिर पर सारी रामायण को बताने के लिए छोटे छोटे बुत और सीन बने हुए थे। एक मंदिर के बाहर दीवारों पर छोटे छोटे जितने भी बुत बने हुए थे, वोह एक दूसरे से भिन थे। यहां मूर्ति कला की बेमिसाल कारीगरी थी। यह मंदिर और साथ के सारे मंदिर इसी लिए बच गए कि यहां एक दीवार पर अल्ला शब्द लिखा हुआ था।
यह मंदिर बिलकुल सही सलामत बच गया था और इस में बहुत कुछ देखने वाला था। इस मंदिर को देखने के बाद गाड़ी में बैठ कर हम दुसरी तरफ चल पड़े। काफी दूर जा कर गाइड ने दिखाया, एक बहुत ही बड़े बाजार के खंडरों को, जिस के निशान दिखाई दे रहे थे। इस जगह सोने चांदी और हीरों का बहुत बड़ा बाजार होता था। वियोपारी लोग अर्ब ईरान से आ कर यहां खरीदो फरोख्त करते थे। इस बाजार का हवाला उस समय की बहुत सी किताबों में मिलता है, ख़ास कर पुर्तगीजों की किताबों में, जिस में पेज़ का नाम ज़्यादा प्रसिद्ध है, जिस ने पूरी डीटेल में हम्पी के बारे में लिखा है। गोवा से पुर्तगीजों का विजय नगर के साथ वीओपर बहुत होता था। पेज़ ने लिखा है कि हम्पी दुनिआं का सब से अमीर शहर था और लोग बहुत खुशहाल थे। मुसलमानों की तोड़ फोड़ के बाद भी यह बड़ी बड़ी दुकानों के खंडर उस समय की अमीरी को दर्शा रहे थे। यहां से हम लोटस टैंपल देखने चले गए। यह गर्मियों के दिनों में रानियों के लिए महल होता था। जिस समय यह अपनी शान में होगा, अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है कि यह कितना खूबसूरत होगा। इस महल की ख़ास बात यह थी कि इस महल को ठंडा रखने के लिए इस सारे महल में पत्थर के पाइपों के ज़रिये पानी सर्कुलेट होता रहता था जो गर्मियों में महल को ठंडा रखता था। उस समय का यह कूलिंग सिस्टम भी कारगरी की एक मिसाल थी। इस के बाद गाइड हमें उस जगह ले गया यहां राजे के हाथी रखे जाते थे। हर हाथी के लिए एक इलग्ग कमरा बना हुआ था जो उस के बैठने के लिए भी काफी था। इस कमरे में हाथी के लिए खाने का इंतज़ाम होता था और हाथी की एक टांग को संगल से बंधने की विवस्था की गई थी। सभी हाथियों के कमरे एक लाइन में थे और इस लाइन के आखर से, राइट ऐंगल में एक और कमरों की लाइन थी, जिस में हाथियों के मुहावत रहते थे, जो हाथियों की देख भाल करते थे, खाना देते और उन को नहलाते रहते थे। गाइड ने बताया कि होली के वक्त इन हाथियों को बहुत सजाया जाता था और शहर में हाथियों के साथ जोरो शोरों से होली का उत्सव मनाया जाता था। हाथियों की बिल्डिंग के सामने ही एक कमरे में छोटा सा अजायब घर बना हुआ था, जिस में हंपी के आर्टिफैक्ट्स रखे हुए थे।
यहां से निकल कर हम उस महल में आ गए यहां रानियों के लिए नहाने का तालाब बना हुआ था। इस तालाब के चारों ओर घूमने के लिए बरामदे बने हुए थे। हम यह कह सकते हैं कि यह रानियों का स्विमिंग पूल था। इस सारी बिल्डिंग के बारे में लिखना असंभव है, बस जब यह अपनी चरण सीमा में होगी तो बहुत ही खूबसूरत रही होगी। गाइड ने बताया कि इस स्विमिंग पूल के पानी में तरह तरह के फूलों की पतीआं डाल दी जाती थी, जिस से सारी हवा महक से भरपूर हो जाती थी। इस बिल्डिंग के बाहर एक खाई थी जो पानी से भरी रहती थी, जिस में मगरमछ रखे होते थे ताकि यहां कोई मर्द आ ना सके। मुखदुआर पर खाई के ऊपर लकड़ी का छोटा सा पुल होता था जो रानियों के अंदर जाते ही ऊपर उठा दिया जाता था। इस पूल को देख कर हम बाहर आ गए। यहां चारों ओर घास और बृक्ष थे, शायद नज़दीक ही कोई स्कूल होगा। एक ब्रिक्ष के नीचे एक गोरा टीचर बच्चों को पढ़ा रहा था। गाइड हमें एक और तरफ ले गया यहां कोई बीस फ़ीट ऊंचा बुत्त था, जिस को उस ने नार्सिमा बताया, जो हमें कुछ समझ नहीं आया। इस बुत के सर के ऊपर बहुत से सांपों के सरों का छत्र बनाया हुआ था, जिस को उस ने शेष नाग को छाया करते बताया था। इस बुत का चेहरा डरावना सा लगता था। क्योंकि यह मुसलमानों के हमले की तोड़ फोड़ के वक्त कुछ टूटा हुआ था, सरकार के किसी महकमे ने इस बुत के दोनों घुटनों को इफ़ाज़त के लिए सीमेंट की एक पट्टी से जोड़ दिया है। अब सब को भूख लग्गी हुई थी और हम एक छोटे से होटल में आ गए। खाना सादा ही था लेकिन भूख में तो सूखी रोटी भी मज़ेदार लगती है, पेट की अग्नि शांत हो गई। कुछ लड़के हंपी के इतिहास की किताबें बेच रहे थे और फोटो भी। मैंने एक किताब ले ली जो किसी अँगरेज़ की लिखी हुई थी। इस किताब से मुझे बहुत कुछ जानने को मिला और यह भी पता चला कि हंपी को सन 1800 में एक अँगरेज़ कॉलिन मेकैंज़ी ने खोज निकाला था।
आगे गए तो उस समय की सती औरतों के बुत बने हुए थे। गाइड ने बताया कि सती औरतों के बुतों को लोग बहुत श्रद्धा से पूजते थे। सतियों के ऐसे बहुत बुत थे और सही सलामत बच गए थे। आगे गए तो एक तकरीबन पचीस फ़ीट ऊंचा लिंग बना हुआ था जिस के इर्द गिर्द पानी था और इस लिंग पर उस समय लगातार तुंगभद्रा नदी का पानी गिरता रहता था और आगे यही पानी खेतों को चले जाता था जिस के लिए पत्थरों के नाले बने हुए थे। इस लिंगा की अब भी लोग पूजा करते हैं। अब हम आगे गए तो एक और मंदिर था जिस को शायद बिठल मंदिर कहते थे। इस मंदिर में मुर्ति कला जितनी कमाल की थी, उस को लफ़्ज़ों में बताया ही नहीं जा सकता लेकिन सब से अचंबित बात जो गाइड ने दिखाई, वोह तो मुझे भूल सकती ही नहीं। यह थी इस मंदिर में दस बारह पत्थर के स्तम्भ जो बहुत ही ख़ूबसूरती से बने हुए थे और हर एक स्तम्भ को हाथों की उंगलियों से उसे एक साज़ की तरह आवाज़ निकलना। इन सारे स्तंभों को हाथों और उंगलियों से बजा कर राग पैदा होते थे। कुछ स्तंभों से अभी भी आवाज़ें निकलती हैं जैसे तबले की आवाज़, ढोलक की आवाज़। गाइड ने बताया कि इन स्तंभों की आवाज़ से जो राग बजाए जाते थे, उस पर नृत्य होता था। इन स्तम्भों के साज़ों की आवाज़ तीन तीन मील दूर तक सुनाई देती थी । अंग्रेजों ने एक स्तम्भ को काट कर देखने की कोशिश की थी कि इन स्तंभों में किया भरा हुआ था लेकिन वोह हैरान रह गए कि इन में कुछ भी नहीं था। यह स्तंभ उसी तरह कटा हुआ है। यह बात मैं बहुत दफा सोचता हूँ कि यह पिलर कैसे बनाये गए होंगे क्योंकि देखने में यह सब एक जैसे थे।
फिर गाइड ने एक बात और बताई, इस मंदिर के दुसरी ओर पहाड़ी पर सुग्रीव का राज्य होना, जिस को उस के भाई बाली ने छीन लिया था। यहां राम चन्द्र जी ने बाली को मारा था, वहां एक मंदिर है। कुछ दूरी पर ही हनुमान एक पत्थरों की गुफा में रहता था और यहां ही राम चन्द्र जी और लक्ष्मण, सीता जी को ढूँढ़ते ढूँढ़ते हुए आये थे और उन का मिलन हनुमान जी से हुआ था जो रामायण में चमकते सितारे की तरह रहेगा। याद नहीं, गाइड ने शायद इस को किशकिंदा नगरी बताया था। दुःख इस बात का है कि हम वहां जा नहीं सके। इस का कारण शायद यह है कि एक तो गाइड ने भी अपना वक्त बचाने के लिए वहां जाने के लिए झिझक कर ली और दूसरे हम में भी मुझ के सिवाए और किसी को इतनी दिलचस्पी नहीं थी। इस मंदिर को देख कर हम बाहर आये तो हमारे सामने दस बारह साल के कुछ लड़के हनूमान बने हुए घूम रहे थे, जिन के हाथों में गदाएँ थीं। हमारी ओर आये और हम से पैसे मांगने लगे। कुछ पैसे हम ने उन को दे दिए और वोह खुश हो गए। अब यहां से निकल कर हम उस जगह आ गए यहां राजा के महल होते थे और एक तरफ पंदरां सोलां फ़ीट ऊंच्चा प्लैट फ़ार्म बना हुआ था, जिस के ऊपर चढ़ने के लिए सीडीआं थीं जो टूटी फूटी थीं और ऊपर चढ़ना कुछ मुश्किल था । मैं और जसवंत इस के ऊपर चढ़ गए, कुछ और लोग भी थे। इस प्लैट फॉर्म के बारे में वैसे तो तो मैंने बाद में सब कुछ पढ़ लिया था लेकिन इस को देख कर मुझे वोह ज़माना सोच में आ गया। इस प्लैट फ़ार्म पर संदल की लकड़ी का बना हुआ वरांडा होता था। इस की छत और सभी पिलर पर बहुत ही खूबसूरत कार्विंग की हुई थी। इस के बीच में राजा का सिंघासन होता था और दरबारियों के खड़े होने के लिए उन की ख़ास जगह होती थी।
क्योंकि यह जगह सब लकड़ी की बनी हुई थी, इस लिए जब आक्रमणकारियों ने हमला किया था, तो इस को आग लगा दी गई थी और सब कुछ जल कर राख हो गया था। आज भी यह पिलरों के नीचे के निशान दिखाई देते हैं। मैं और जसवंत ने नीचे के खंडरों की फोटो लीं। नीचे आये तो गाइड आगे ले गया यहां कभी राजे के महल हुआ करते थे। अब इस के सिर्फ निशान ही दिखाई देते थे। एक जगह छोटी सी सीडीआं नीचे को जाती थी। इस में उत्तर गए। गाइड ने बताया कि यहां राजे के छुपने के लिए गुप्त दरवाज़ा होता था। क्योंकि हमले तो होते ही रहते थे, इस लिए राजा और उस के परिवार के लिए यह गुप्त अस्थान होता था, जिस का पता राजा और उस के ख़ास दरबारियों को ही होता था। इस के कुछ आगे गए तो बहुत ही सुन्दर तालाब था, जिस में जाने के लिए बहुत ही सुन्दर डिज़ाइन की सीडीआं बनी हुई थी। बीच में पानी अभी भी था। मैं और जसवंत नीचे पानी तक चले गए और ऊपर को देखा तो यह भी आर्ट का एक नमूना था। इस तालाब के कोई बीस पचीस गज़ की दूरी पर पत्थर की नालियां बनी हुई थीं, जिन के जरिए इस तालाब को पानी आता था। यह पानी तुंगभद्रा नदी से आता था। छोटे छोटे पुलों पर बनी यह नालियां उस ज़माने की इंजीनिरिंग दर्शा रहा था। यह नालियां दूर दूर तक दिखाई देती थीं लेकिन कुछ जगह से टूटी हुई थीं।
और भी काफी कुछ देखा। हम सब अब थक चुक्के थे और वापस जाने की तैयारी कर ली। यह सारा हंपी देखने के लिए एक दिन और चाहिए था लेकिन सुबह को हम ने वापस गोवा चले जाना था क्योंकि वापस इंग्लैंड आने को भी अब ज़्यादा वक्त नहीं रह गया था। गाड़ी में बैठ कर हम वापस हॉस्पिट की ओर जाने लगे। हमारे गाइड ने बोला कि उस का गाँव रास्ते में ही आता है, इस लिए उस को वहां उतार दें। अब हम गाइड से बातें कर रहे थे और वोह बता रहा था कि उस ने बीए तक पढ़ाई की थी लेकिन कोई काम नहीं मिला। क्योंकि वोह इतिहास का विदयार्थी रहा था, इस लिए उस ने गाइड बन जाना ही ठीक समझ। उस ने यह भी बताया कि वोह बजरंग दल का ऐक्टिव मैम्बर है। उस वक्त हम को बजरंग दल के बारे में कुछ भी पता नहीं था। बातें करते करते उस का गाँव आ गया था और वोह नमस्ते बोल कर उत्तर गया। कुछ ही देर बाद हम अपने होटल जा पहुंचे। नहा धो कर मैं किताब पढ़ने लगा जो मैंने हंपी से खरीदी थी। किताब कोई बड़ी नहीं थी लेकिन इस में हंपी का सारा इतिहास लिखा हुआ था। जो गाइड ने हमें बताया था, वोह तो शायद दस प्रतिशत भी नहीं था। थोह्ड़ा बहुत तो मैंने कालज के दिनों में विजय नगर एम्पायर के बारे में पड़ा हुआ था। गोलकंडा, बीजा पुर, बिदर और अहमद नगर के सुल्तानों को पड़ा हुआ था लेकिन इस से ज़्यादा मुझे कुछ भी पता नहीं था। जैसे जैसे इस किताब को मैं पड़ता गया, मुझे ऐसे लगने लगा जैसे यह सब मेरी आँखों के सामने ही हुआ हो। हंपी को देख कर मुझे यह भी पता चला कि भारती सभ्यता उस वक्त कितनी उनत थी और इस्लामी हमलों ने कितना इस को बर्बाद कर दिया था। चलता . . . . . . . . . . . . .