गज़ल
जितना तुमसे मैं दूर जाता हूँ,
उतना तुमको करीब पाता हूँ,
तेरी जुदाई के तसव्वुर से,
दिये की लौ सा थरथराता हूँ,
सर्द रातों में गर्म आहों से,
बुझी चिंगारियां सुलगाता हूँ,
बादलो साथ तुम भी देना ज़रा,
हाल-ए-दिल अब उन्हें सुनाता हूँ,
चल सूरज पे लिख के नाम तेरा,
आज फिर ऊंगलियाँ जलाता हूँ,
कमाई होंगी दौलतें तुमने,
रिश्ते मैं मगर कमाता हूँ,
उम्र सारी उदास रहना है,
सोचता हूँ तो मुस्कुराता हूँ,
आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।