मेरी कार, मेरी कार
मेरी कार, मेरी कार,
सरपट दौड़े, मेरी कार।
पापा को ऑफिस ले जाती,
मम्मी को बाजार घुमाती।
कभी द्वारका , कभी आगरा,
सैर – सपाटे खूब कराती।
भैया के मन भाती कार,
मेरी कार, मेरी कार।
जब शादी में जाना होता,
या मंदिर में जाना होता।
इडली, ढोसा, पीजा, बर्गर,
जब होटल में खाना होता।
सबको ले कर जाती कार,
मेरी कार, मेरी कार।
बस के धक्के और धूल से,
गर्मी हो या पानी बरसे।
मुझे बचाती, मेरी कार,
खाँसी भागी, मनवा हरसे।
और न आता कभी बुखार,
मेरी कार, मेरी कार।
छोटा भैया कहता – दीदी,
सभी खिलोने ले कर चलते।
घर – घर खेलें, चलो कार में,
पापा-मम्मी खुश-खुश रहते।
जब से आई, घर में कार,
मेरी कार, मेरी कार।
…आनन्द विश्वास