मुक्तक/दोहा

” तीन मुक्तक “

मैं तेरे इक इशारे को, नजर का तीर लिख दूंगा,
तेरी बाहों के घेरे को, हसीं जंज़ीर लिख दूंगा,
हमारी चाहतों को इक नया अब नाम हम दें दें,
तेरा रांझा बनूगां तुझको अपनी हीर लिख दूंगा!

चलो फिर आज से बरसों पुरानी रीत हो जाऐ,
यहां फिर सबके होठों पर प्यार का गीत हो जाऐ,
कहे कोई ना फिर देखो ये तेरा है ये मेरा है,
चलो अब हार जाऊं मैं, तुम्हारी जीत हो जाऐ!

अमन का, दोस्ती का शायद, रिश्ता लौट आया है,
महकता और खिलता फिर, गुलिस्तां लौट आया है,
उठाकर देखलो नज़रें, गज़ब के ये नज़ारें हैं,
लिये खुशियों की सौगाते, फरिश्ता लौट आया है!

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से