मुक्तक/दोहा

मुक्तक

असफलता पै नसीहतें नश्तर सा लगता है
स्याह गुजरता पल शैल-संस्तर सा लगता है
बढ़ाता आस तारीफ पुलिंदा अग्नि-प्रस्तर सा
जन्म लेता अवसाद दिवसांतर सा लगता है

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ