कुछ मुक्तक….
तुम साँस की चलन हो दिल की तुम्ही हो धड़कन ।
मेरा वजूद तुमसे तुम हो हमारा जीवन ।
तुम खाब तुम हकीकत अहसास मीत तुम हो ।
तुम मौन हो अधर का तुम ही हमारा “गुंजन”।
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अंदाज़ मेरे तुम हो अल्फाज भी तुम्ही हो
धड़कन तुम्ही हो मेरी आवाज भी तुम्ही हो
होना न दूर मुझसे तुम बिन न जी सकूँगी ।
हो साँझ मेरी दिन का आगाज भी तुम्हीं हो ।
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तुमसे जुड़ी हैं धड़कने साँसो की डोर है ।
देखूँ न जब तलक तुझे होती न भोर है ।
तेरी निगार आँख ये हरसू तलाशती ।
खामोशियाँ फैली हुई “गुंजन” न शोर है ।
———-अनहद गुंजन ‘गूँज’