मुक्तक/दोहा

कुछ मुक्तक….

तुम साँस की चलन हो दिल की तुम्ही हो धड़कन ।
मेरा वजूद तुमसे तुम हो हमारा जीवन ।
तुम खाब तुम हकीकत अहसास मीत तुम हो ।
तुम मौन हो अधर का तुम ही हमारा “गुंजन”।
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अंदाज़ मेरे तुम हो अल्फाज भी तुम्ही हो
धड़कन तुम्ही हो मेरी आवाज भी तुम्ही हो
होना न दूर मुझसे तुम बिन न जी सकूँगी ।
हो साँझ मेरी दिन का आगाज भी तुम्हीं हो ।
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तुमसे जुड़ी हैं धड़कने साँसो की डोर है ।
देखूँ न जब तलक तुझे होती न भोर है ।
तेरी निगार आँख ये हरसू तलाशती ।
खामोशियाँ फैली हुई “गुंजन” न शोर है ।

———-अनहद गुंजन ‘गूँज’

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*