लघुकथा

आज भी ऐसे लोग मिल ही जाते हैं

एक दिन हमने कहीं जाने के लिए रेडियो टैक्सी हायर की. अभी हम टैक्सी में बैठे ही थे कि, हमसे रास्ता पूछने के बाद टैक्सी ड्राईवर ने शिकायत के लहज़े में नहीं, मात्र सहज भाव से अपनी रामकहानी सुनानी प्रारम्भ की. वह निरंतर बोलता ही चला गया. वह बोला, “साहब मैं भी कभी एक कम्पनी का मालिक था. मेरे अंडर बहुत मातहत थे जो, मेरी कम्पनी की रीढ़ थे. एक दिन उस रीढ़ में सेंध लग गई और मेरे सत्तर-अस्सी लाख डूब गए, साथ ही मेरी साख को भी नज़र लग गई. मुझे कम्पनी बंद करनी पड़ी और मातहतों का वेतन चुकाते-चुकाते ही मैं तबाह हो गया. फिर भी मैं किस्मतवाला हूं कि, भारत की राजधानी दिल्ली के बड़े दिल ने मुझे अपने दिल में थोड़ी-सी जगह दे दी. कुछ चाहने वाले सच्चे दोस्तों की कृपा से यह कार खरीद ली और एक टैक्सी कम्पनी ने मुझसे नाता भी जोड़ लिया. ” तभी उसके एक दोस्त का अपनी रकम अदा करने के तकादे का फोन आ गया. उसने सीधे-सीधे उससे कह दिया कि, “भाई,अभी मैं एक दोस्त का लोन चुका रहा हूं, फिर एक और का कर्ज़ा चुकाऊंगा. सबसे आखिर में तेरा नंबर लगेगा.” उसके वाकई सच्चे दोस्त ने “ओ.के. भाई, तू निश्चिंत रह.” कहकर इजाज़त लेकर फोन बंद कर दिया. इतनी खुशहाली के बाद ऐसी तंगहाली के बावज़ूद वह कितना शांत था, कितना संतुष्ट था, यह देखकर मैं तो दंग रह गई. उसे न तो किसी राजनीतिज्ञ से कोई शिकायत थी न ही रोज़ बढ़ती हुई महंगाई से. बस टैक्सी का रोज़ का किराया चुकाने और दो वक्त की रोटी का जुगाड़ होने के बाद मित्रों का लोन चुकाने को कुछ बचत भी हो सके, इतना ही उसके लिए काफ़ी था. आजकल के तेज़-तर्रार ज़माने में आज भी ऐसे लोग मिल ही जाते हैं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244